________________
-
60 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements परम्परायें हतप्रभ है। श्रमण परम्परा भी देश की आर्थिक राजनीतिक एवं नैतिक अध:पतन की दिशा की और अभिमुख है जिससे सभी में चिन्ता व्याप्त है।
मुख्तार सा. ने सो आ. समन्तभद्र के रत्नकरण्ड श्रावकाचार के देशयामि समीचीनं धर्म कर्म निबर्हणम्' को आधार बनाकर उपर्युक्त नाम रखा था, परन्तु आजकल 'किसने मेरे ख्याल में दीपक जला दिया''वो लड़की' जैसी कृतियाँ धार्मिक कृति के रूप में घर-घर पहुंचाने का उपक्रम किया जा रहा है। भगवान महावीर तथा परवर्ती आचार्यों के नाम पर गुरु-शिष्य परम्परा से यद्वा तद्वा प्रतिष्ठापना चल रही है। इसे कालदोष की संज्ञा दी जाय या विचारशून्यता अथवा निहित स्वार्थान्ध वृत्ति का सूचक माना जाय। सामाजिक चेतना एवं धार्मिक न्याय के पक्षधर
सतत् जागरुकता जीवन्त समाज की रीढ़ है और यह जागरूकता सामाजिक चेतना के कारण अतीत है। सामाजिक चेतना को स्फूर्ति प्रदान करने में सामाजिक न्याय को महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारतीय संविधान भी सामाजिक न्याय की महत्ता को स्वीकार करता है, परन्तु वास्तविक जीवन में सामाजिक न्याय से समाज व देश अभी भी कोसों दूर है। मुख्तार सा. की दृष्टि में सामाजिकन्याय मात्र वचन तक सीमित नहीं होना चाहिए वरन् वास्तविक जीवन में जीवन्त होना चाहिए। अन्याय उन्हें मनसा वाचा कर्मणा सह्य नहीं था। मेरी भावना में ही उनकी निःस्वार्थ न्यायप्रियता की झलक मिलती है
कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे, लाखों वर्षों तक जीऊ या मृत्यु आज ही आ जावे। अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे, तो भी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न पग डिगने पावे ॥
उपर्युक्त पद्यांश उनकी न्यायप्रियता का ही संसूचक नहीं है अपितु श्रमण संस्कृति के सर्वोच्च आदर्श और मान दण्ड निर्भयता, निर्लोभवृत्ति, सत्याचरण को आत्मसात् करता हुआ तनुरूप बनने के लिए प्रेरित करता है। आज के सन्दर्भ में उक्त मानदण्ड मात्र चर्य के विषय रह गए हैं या आदर्श