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पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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इन ग्रन्थों का जालीपन सप्रमाण सिद्धकर जैन धर्म व संस्कृति के रक्षण में अपना महान योगदान दिया।
इतिहासकार; प्रौतियों का निरवार
अपनी पैनी सोध दृष्टि और गवेषणात्मक वृत्ति, अनवरत अध्ययन और विश्लेषणात्मक शैली द्वारा मुख्तार सा. ने जैन मूलग्रन्थों के लेखकों के रचनाकाल का निर्धारण किया है। समन्त भद्राचार्य के सम्बन्ध में डॉ. के. बी. पाठक ने कुछ शंकाएँ प्रगट की थी। उनके निराकरणार्थ मुख्तार सा. ने बौद्ध साहित्य का गहन अध्ययन कर प्रचलित भ्रान्त धारणाओं का सप्रमाण निवारण किया । इसी प्रकार तत्वार्थाधिगम-भाष्य और तत्वार्थ सूत्र का सूक्ष्मपरीक्षण कर उन्हें पृथक-पृथक लेखकों की रचना सिद्ध की। 'पंचाध्यायी' ग्रन्थ के रचयिता' राजमल्ल, सिद्ध किया। वीरशासन जयन्ती की तिथि, श्रावण कृष्णा प्रतिपदा का निर्धारण, उन्हीं के गवेषणापूर्ण निबन्ध द्वारा प्रमाणित की गयी है। कुछ अन्य ऐतिहासिक शोध निबन्धों में 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा और स्वामी कुमार', 'सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन', 'श्रुतावतार कथा' आदि गिनाए जा सकते हैं। प्रस्तावना लेखक / संपादक-पत्रकार : लेखनकला का विस्तार
इसके अतिरिक्त पं. जुगलकिशोर मुख्तार ने अनेक मूल ग्रन्थों का संपादन एवं उनकी अतिमहत्वपूर्ण विस्तृत प्रस्तावनाएँ लिखी हैं। ये प्रस्तावनाएँ मूलग्रन्थ को खोलने वाली कुंजी के समान हैं, जिनमें संपूर्ण ग्रन्थ की विषयवस्तु एवं ग्रन्थकार का जीवन परिचय आदि मिल जाता है। इससे ग्रन्थ का आद्योपान्त स्वाध्याय करने की रूचि एवं उत्सुकता बढ़ जाती है। उदाहरणार्थ 'स्वयम्भूस्तोत्र', 'युक्त्यानुशासन', 'देवागम', 'तत्वानुशासन', 'समाधितंत्र', 'पुरातन जैन वाक्य सूची', 'समन्तभद्र भारती' आदि गिनाई जा सकती हैं। कुछ प्रस्तावनाएँ तो इतनी विस्तृत, ज्ञानप्रद एवं विश्लेषणात्मक हैं कि वे एक स्वतंत्र समीक्षात्मक ग्रन्थ का रूप ले लेती हैं। जिसमें ग्रन्थकार के साथ-साथ अनेक पूर्व और पश्चात्वर्ती आचार्यों के ग्रन्थों का तुलनात्मक अध्ययन मिल जाता है ।