________________
पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
3. जैन, सतीश कुमार
:
4. शास्त्री, लाल बहादुर, आदि
5. युगवीर, जुगलकिशोर मुख्तार
6. जैन, सगरमल
प्रोग्रेसिव जैन्स आव इंडिया
श्रमण साहित्य संस्थान, दिल्ली 1976 पेज 37
: विद्वत् अभिनंदन ग्रंथ, दि. जैन शास्त्री परिषद्, बडीत, 1976 पे. 247
: 'जैन साहित्य और इतिहासकार विशद
क्षान्तिश्चेत्कवचेन किं किमरिभिः क्रोधोस्ति चेद्देहिनां ज्ञातिश्चेदनलेन किं यदि सुहद्दिव्यौषधैः किं फलम् । किं सर्पैर्यदि दुर्जनाः किमु धनैर्विद्यऽनवद्या यदि व्रीडा चेत्किमु भूषणै: सुकविता यद्यस्ति राज्येन किम् ॥
नहीं ।
प्रकाश', वीर शासन संघ, कलकत्ता, 1956 : 'तत्वार्थसूत्र और उसकी परंपरा', पार्श्वनाथ विद्यापीठ काशी, 1994.
यदि मनुष्य के पास क्षमा है तो कवच की क्या आवश्यकता ? यदि क्रोध है तो शत्रुओं की क्या आवश्यकता ? यदि स्वजातीय हैं तो अग्नि की क्या आवश्यकता? यदि मित्र हैं तो दिव्य औषधियों की क्या आवश्यकता ? यदि दुर्जन हैं तो सर्पों की क्या आवश्यकता ? यदि निर्दोष विद्या है तो धन की क्या आवश्यकता? यदि लज्जा है तो आभूषण की क्या आवश्यकता? यदि काव्य-शक्ति है तो राज्य की क्या आवश्यकता ?
49
- भर्तृहरि (नितिशतक, २१)
गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिंग न च वयः ।
गुणियों में गुण ही पूजा के स्थान होते हैं, लिंग अथवा वय
- भवभूति (उत्तररामचरित, ४|११ )