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राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक
डॉ. ज्योति जैन, खतौली
'इति भीति व्यापे नहीं जग में वृष्टि समय पर हुआ करे धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करे। रोग मरी दुर्भिक्ष न फैले प्रजा शांति से जिया करे परम अहिंसा धर्म जगत में फैल सर्वहित किया करे।'
मेरी भावना की इन पंक्तियों में राष्ट्र के अभ्युदय की जो कामना की गयी है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। ये पंक्तियां क्यों, संपूर्ण मेरी भावना में जो राष्ट्र कल्याण की कामना की गयी है वह न केवल जैन साहित्य अपितु भारतीय साहित्य की अनुपम धरोहर है। वस्तुतः कहा जाये तो मेरी भावना सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय कविता है और मुख्तार साहब राष्ट्रीय कवि।
कवि या लेखक भविष्य दृष्टा होता है। वह जो लिखता है वह कालातीत और देशातीत होता है। मुख्तार साहब ऐसे ही कवि/लेखक थे। उनके निबंध उस समय, समय की कसौटी पर खते उतरे थे और आज भी उतर रहे हैं। उनमें राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी है। उस जमाने में जब अंग्रेजों के विरुद्ध एक शब्द भी लिखना आफत मोल लेना था, मुख्तार साहब ने सितम्बर 1921 में 'देश की वर्तमान परिस्थिति और हमारा कर्तव्य' जैसा लेख लिखा। जिसमें देश की हालत और अंग्रेजों के अत्याचार का विरोध किया गया था। 1947 में अनेकांत में लिखे गये राष्ट्रीय भावना से सराबोर उनके ये शब्द आज भी सत्य सिद्ध हो रहे हैं
"भारत की स्वतंत्रता को स्थिर/सुरक्षित रखने और उसके भविष्य को समुज्जवल बनाने के लिए इस समय जनता और भारत हितैषियों का यह मुख्य कर्तव्य है कि वे अपने नेताओं को उनके कार्यों में पूर्ण सहयोग प्रदान करें। इसके लिए सबसे बड़ा प्रयत्न देश में धर्मान्धता अथवा महजबी पागलपन दूर