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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer Personality and Achievements
मुख्तार साहब बहुत बड़े विद्वान् थे। वे हिमालय थे और उनके सामने मैं एक कंकड़ के बराबर भी नहीं था, परन्तु उनका बड़प्पन भी बेमिसाल था। उन्होंने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी और थोड़ी ही देर में दोनों पंक्तियों का सुधारा हुआ रूप एक चिट पर लिखकर मुझे दे दिया। अब"पर-धन वनिता" के स्थान पर "पर-धन पर-तन पर न लुभाऊ" कर दिया गया था और राजा शब्द को "शासक" से बदल दिया गया था। "धर्मनिष्ठ होकर शासक भी न्याय प्रजा का किया करें," यह बहुत सार्थक पंक्ति बन गई थी। मुख्तार साहब इस सुधार पर एक नोट अनेकान्त में लिखना चाहते थे, पर वह सम्भव नहीं हो पाया।
अंतिम दिनों में वीर-सेवा मन्दिर की गतिविधियों से उन्होंने कुछ तटस्थता धारण कर ली थी। उसके एक प्रस्तावित प्रकाशन को लेकर 2-31966 को एटा से उन्होंने मुझे लिखा था- "मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि टीकमगढ़ के श्री पं. ठाकुरदासजी ने "समंतभद्र-भारती" - की जो संशोधित प्रति अपने "प्राक्कथन"के साथ छपाने के लिये भेजी थी, वह छप गई है या कि नहीं? यदि छप गई हो तो उसकी दो या एक प्रति मुझे भिजवाने की कृपा करें। यदि वह अभी तक न छपी हो, और शीघ्र छपने की कोई आशा न हो, तो कृपया उनकी वह संशोधित प्रति, प्राक्कथन सहित मुझे देखने के लिये, शीघ्र रजिस्ट्री से भेजकर अनुग्रहीत करें, जिससे यह मालूस किया जा सके कि उन्होंने कहा, क्या संशोधन किया है। इस कृपा के लिये मैं आपका आभारी रहूंगा। उक्त संशोधित प्रति और प्राक्कथन, दोनों ही देखने के बाद आपको जल्दी वापस कर दिये जायेंगे। शेष कुशल मंगल है, योग्य सेवा लिखें।
भवदीय
जुगलकिशोर
पुरातत्व और इतिहास पर काम होता रहे ऐसी सदा बलवती भावना मुख्तार साहब के मन में रही है। 1966 में श्रीमान् बाबू छोटेलालजी के स्वर्गवास के उपरान्त उनकी सामग्री को लेकर जब मैंने उन्हें पत्र लिखा तब उनका बहुत प्रेरणाप्रद पत्र मुझे मिला। 12-4-66 के उस पत्र में उन्होंने मुझे लिखा था- "बाबू छोटेलाल जी की पुरातत्व सम्बन्धी सामग्री आप अपने