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पं. जुगलकिशोर मुखार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पंडित साहब ने बताया कि ये वे ही मुख्तार साहब हैं जो "युगवीर" के नाम से विख्यात है तथा सबसे प्रसिद्ध एवं प्रिय रचना "मेरी भावना" के रचयिता हैं। मुख्तार साहब सफल समालोचक एवं ग्रंथों के समीक्षाकार हैं। इनने भट्टारकों द्वारा रचित शिथिलाचार के पोषक अनेक ग्रंथों की समीक्षा कर समाज को सच्चा मार्ग दिखाया है। पं. परमानन्द जी शास्त्री भी अच्छे विद्वान् हैं जो दिल्ली में मुख्तार साहब के सहयोगी हैं तथा उनके पास 'वीर सेवा मन्दिर' में ही कार्यरत हैं। ये प्राचीन ग्रंथों की प्रशस्तियां एकत्रित कर रहे हैं जिससे जैन साहित्य के इतिहास पर पूरा प्रकाश डाला जावेगा।
इसके पश्चात् तो मुख्तार साहब को दो-चार बार जयपुर में पंडित चैनसुखदास जी से अनेक प्रकार की चर्चाएं करते देखा। पं. परमानन्दजी सदैव उनके साथ आते थे। धीरे-धीरे दोनों विद्वानों से अच्छा परिचय हो गया। जैन साहित्य एवं पुरातत्व की खोज एवं शोध में मेरी रुचि होना इसी मिलन का परिणाम है।
बाबू छोटेलाल जी जैन भी एक ऐसे ही पुरातत्व प्रेमी थे - वे मुख्तार साहब के पूरे भक्त थे। एक दो बार तो वे स्वयं मुख्तार साहब को लेकर जयपुर पंडित चैनसुखदास जी के पास आये थे। ये सभी जैन साहित्योद्धार के कार्य को प्रमुखता देने वाले थे।
शास्त्रे प्रतिष्ठा, सहजश्च बोधः प्रागल्भ्यमभ्यस्तगुणा च वाणी। कालानुरोधः प्रतिभानवत्त्वमेते गुणाः कामदुधाः क्रियासु॥
शास्त्र में निष्ठा, स्वाभाविक ज्ञान, प्रगल्भता, गुणों के अभ्यास से सम्पन्न वाणी, कार्य के उचित समय का अनुसरण और प्रतिभा की नवीनता - ये गुण कार्यों में मनोरथों को पूर्ण करने वाले होते हैं।
-भवभूति (मालतीमाधव, ३।११)