________________
सरसावा के संत तुम्हे शत-शत प्रणाम
डॉ. कुन्दन लाल जैन, दिल्ली
यहां उपस्थित जन समूह सरसावा क्या है, कहाँ है, क्यों प्रसिद्ध है इससे सर्वथा अपरिचित होगा। यह सरसावा एक कस्बा है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले की एक तहसील है। सहारनपुर से 10-15 कि.मी. दूर रेल्वे स्टेशन है तथा बसों से भी यहां पहुंचा जा सकता है। प्रसिद्ध इसलिए है कि यहाँ जैन पुरातत्व, इतिहास एवं साहित्य के परमपुरोधा स्व. बाबू जुगलकिशोर जी मुख्तार पैदा हुए थे, जिन्होंने जैन समाज को वीर सेवा मंदिर जैसी सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक संस्था दी, अनेकान्त जैसी अनेकों में शिरमौर एक मासिक शोध पत्रिका दी, जिसके पढ़ने के लिए प्रबुद्धजन लालायित रहते थे । प्रत्येक मास की 4-5 तारीख तक पत्रिका नहीं पहुंचती तो लोग बिलबिलाने ad थे और चिट्ठियों का ढेर लग जाता था कि पत्रिका क्यों नहीं पहुंची उस समय 'अनेकान्त' जैन बुद्धिजीवियों तक ही सीमित नहीं था, अपितु जैनेतर शोधार्थी लोग भी बडे शौक से कोई नवीन खोज जानने के लिए लालायित रहते थे। उस समय का 'अनेकान्त' जैन साहित्य की नवीनतम शोध सामग्री से भरपूर क्रान्तिकारी विचारों से भरपूर रहता था, लोग उसकी प्रतियां इकट्ठी कर वार्षिक फाइलें तैयार कर बहुमूल्य धरोहर की भांति सम्हाल कर रखते थे। मेरे पास भी कई वार्षिक फाइलें 'अनेकान्त' की मौजूद हैं, जिनमें आज जैन ऐतिहासिक शोध के लिए सामग्री मिल जाती है और सर्वथा नवीन सी लगती है। वह आज की शोध खोजों में सहायक होती है, साथ में पत्रिका के संपादक स्व. बाबू जुगलकिशोर जी मुख्तार की समाज सुधार की साहित्यिक शोध-खोज और विकास की एव अन्य समाज एवं साहित्य संबंधी उपयोगी टिप्पणियां सटीक और सप्रमाण निर्भीक भाषा में लिखी जाती थीं, जिन्हें पढ़कर जिज्ञासुजनों की आंखें खुल जाती थीं। उस समय उसकी ग्राहक संख्या बहुत अधिक थी ।