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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements बिद्वान् थे पर शास्त्रार्थ में उन्हें जैन धर्म की विशेषताओं का पता चला तो जैन धर्म में दीक्षित हो गये थे और क्षुल्लक पद तक पहुंच गये थे, पर क्षुल्लक पद की कठोर चर्चा से विचलित होकर भ्रष्ट हो गये और फिर पता नहीं चला कि अंत क्या हुआ। उस आयोजन में सम्मिलित विद्वानों में बा. छोटेलाल जी, कलकत्ता जिन पर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों ही कृपा दृष्टि थीं, वहां विराजमान थे। वे कलकत्ता से वी.से.मं. को लाखों रुपयों की सहायता राशि भिजवाया करते थे। धीरे-धीरे मुख्तार सा. और छोटे लाल जी में इतना अधिक स्नेह परिवर्द्धित हुआ कि पं. कैलाशचन्द जी वाराणसी ने उसे भक्ति और भगवान के स्नेह की संज्ञा दी थी। बाद में किसी अन्य व्यक्ति के दुर्भाव से दोनों की बीच इतनी अधिक कटुता हो गई थी कि एक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते थे। बा. छोटेलाल जी मूर्तिकला के विशेषज्ञ थे और अपनी ईमानदारी
और निष्पक्षता के लिए वे कलकत्ता में प्रसिद्ध थे।Gurry bea aussociation के वे अध्यक्ष रहा करते थे और किसी भी विवाद को निपटाने में लोग उनकी शरण में आते थे और उनके निर्णयों से दोनों पक्ष संतुष्ट होकर खुशी-खुशी वापिस चले जाते थे। इनकी (वा. छोटेलाल जी) विशेष चर्चा तथा ग्रंथ के बारे में आगे चर्चा करूंगा।
स्व. डॉ. ज्योति प्रसाद जी लखनऊ भी उस समय वहां कई महिनों तक रहे, वे अस्वस्थ थे शायद T.B. हो गई थी। अत: जलवायु परिवर्तन के लिए पधारे थे और साथ ही शोध और अध्ययन में तल्लीन रहते थे। इसी बीच एक और कटु प्रसंग याद आ रहा है। श्रद्धेय कोठिया जी ने न्याय दीपिका अथवा आप्तपरीक्षा का हिन्दी अनुवाद विद्वतापूर्ण प्रस्तावना सहित किया था और उसे वे अपने पूण्य पिताजी को समर्पित करना चाहते थे पर मुखतार सा. की इस विषय में अस्वीकृति थी, परस्पर दोनों में बड़ी चर्चा और विचारों का आदान-प्रदान हुआ जो विवाद के रूप में परिणत हो गया और कोठिया जी ने अपना स्तीफा पेश कर दिया। मुख्तार सा. साहित्यानुरागी और गुणग्राही तो थे ही और कोठिया जैसा न्यायवेत्ता कोई था नहीं, अत: मुख्तार सा. उनें छोड़ना नहीं चाहते थे। फलतः कोठिया जी की बात मान ली गई और दोनों के मन निर्मल हो गये और वह निर्मलता इतनी अधिक बढ़ी कि