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पं. बुगलकिशोर मुगार "बुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व मुख्तार सा. ने कोठिया जी को दत्तक पुत्र ही बना लिया। अपनी सारी संपत्ति का अधिकारी और सारा ट्रस्ट ही उन्हें सौंप दिया। आज कोठिया जी वी. से. म. ट्रस्ट के सर्वेसर्वा हैं और इस ट्रस्ट ने कई मौलिक कृतियों का प्रकाशन किया है। दिल्ली के लाला सिद्धोमल जी कागजी मुख्तार सा. के बड़े भक्त थे, उन्हें कागज संबंधी परेशानी नहीं होने देते थे।
वीर सेवा मंदिर की स्थापना सन् 1936 में श्रद्धेय मुख्तार सा. ने सरसावा में अपने ही भवन में की थी तथा इसके सुसंचालन हेतु 51 हजार रुपयों की स्वोपार्जित विशाल धन राशि इस संस्था को प्रदान की थी। सरसावा में यह संस्था उन्नति के चरमशीर्ष पर विद्यमान रहीं। साहित्यानुरागी, शोधार्थ विद्वानों के लिए यह संस्था साहित्य तीर्थ बन गई थी, इस संस्था के शोध पूर्ण प्रकाशनों और अनेकान्त' की गरिमामयी सामग्री से सारा समाज इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वे इसे सरसावा जैसे छोटे गांव से उठाकर राजधानी में विराजमान कर देने के लिए मुख्तार सा. को फसलाने लगे, मनाने लगे, रिझाने लगे और मुख्तार सा. लोगों की चिकनी-चुपड़ी बातों में फिसल गए। यहीं से वीर सेवा मंदिर का हास प्रारंभ हो गया। लगभग 50 के दशक में (निश्चित तिथि का पता नहीं) यह जैन समाज की सर्वश्रेष्ठ संस्था 'अनेकान्त' जैसी गरिमामयी पत्रिका के साथ दिल्ली में प्रतिष्ठापित हो गई थी। 16 जुलाई 1954 को उस भव्य भवन का उद्घाटन स्व. साहूशांति प्रसाद जी के करकमलों से हुआ था। शायद वीर शासन जयंती का दिन था।
आज दिल्ली के 21 दरियागंज अंसारी रोड पर स्थित इस संस्था के विशाल भवन की अपनी ही कहानी है। यहां स्व. लाल राजकृष्ण जी कोयले वाले रहा करते थे और दरियागंज के बहुत बड़े भूभाग के मालिक थे। एक नं. दरियागंज तो इनका ही था जहां मुसलमानों का कब्रिस्तान था, इन्होंने खरीद लिया था। जब इन्होंने यहां निर्माण कार्य किया तो मुसलमानों ने विरोध किया, ला. राजकृष्ण जी बड़े चतुर और व्यवहार कुशल थे, रूपये की तीन अठन्नियां भुमाने में पटु और माहिर थे। उन्होंने बड़ी चतुराई से मुल्लामौलवियों को पटा लिया और उनसे फतवा दिलवा दिया, जिससे कौडियों वाली सारी भूमि करोड़ों की हो गई। यहीं डॉ. अंसारी की बड़ी विशाल कोठी