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पं जुगलकिशोर मुखार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व सा. तो सदैव खदर पहिना करते थे और गांधी टोपी लगाते थे, बा. सूरजभान जी वकील को पता चला कि प्रसिद्ध जैन क्रान्तिकारी अर्जुनलाल जी सेठी जेल में अनशन पर बैठे हैं और कहते हैं कि जब तक देवदर्शन नहीं कर लेता, तब तक अन्नजल ग्रहण नहीं करूंगा, जेल में देवदर्शन की व्यवस्था कहाँ ? बाबू सूरजभान जी ने अपने इष्ट मित्रों से चर्चा की जेलर से मिले और उसे जैन आस्था और गृहस्थ के षट् कर्मों से अवगत कराया। वह इनके तर्कों से सहमत हो गया और सेठी जी की कोठरी में एक उच्च स्थान की व्यवस्था कर दी और बाबू सूरजभान जी आदि प्रबुद्ध देशप्रेमी जनों ने किसी मंदिर से मूर्ति लेकर भक्तिभाव से सेठी जी की कोठरी में विराजमान करा दी। सेठी जी प्रभुजी की प्रतिमा के दर्शन कर भाव विह्वल हो गये और बड़ी प्रसन्नता से देव दर्शन कर अन्नजल ग्रहण किया। स्व. सेठी जी जैन समाज के अनूठे रत्ल थे। देश प्रेम के लिए उन्होंने बड़े-बड़े कष्ट सहे और यातनाएँ भोगी; पर गांधीजी की विचारधारा से विचलित नहीं हुए। सेठी जी का जीवन चरित्र नई पीढ़ी के युवकों को पढ़ना चाहिए और देश भक्ति की भावना से ओत-प्रोत होना चाहिए ऐसे क्रान्तिकारी जीव का कृतघ्न जैन समाज ने कोई उपकार नहीं माना और कभी भी उनका सम्मान नहीं किया और उलटे उन्हें नास्तिक कहकर तिरस्कृत किया। अंत समय में मानसिक दृष्टि से विक्षिप्त से हो गये थे, फलतः कुछ ऐसी समाज सुधार की बातें करते थे कि रुढ़िवादी जैन समाज उन्हें हजम नहीं कर सका और स्थिति ऐसी बनी कि कोई उनके दाह संस्कार को भी तैयार न था, फलस्वरूप मुसलमानों ने उनका दाह संस्कार किया।
मुख्तार सा की देशभक्ति की भावना उनकी कृतियों में मिलती है, मेरी भावना उनकी ऐसी अमर कृति है जिसकी लक्षाधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं और देश की विभिन्न भाषाओं तमिल, तेलगु, कन्नड, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। मेरी भावना इतनी उत्कृष्ट और प्रसिद्ध रचना हुई कि उससे गांधीजी भी प्रभावित हुए और उनहोंने अपनी वर्धा आश्रम में उसके कई छंद दीवारों पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखवाये थे, मुख्तार सा. की देशप्रेम की पंक्तियां निम्न प्रकार हैं-(1) बनकर सब 'युगवीर'