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xxvi Pandit Jugal Kishor Mukhtar Yugvoer" Personality and Achiavernents लेखा: शोधात्मकास्तस्य,
श्री जुगलकिशोरस्य विद्यन्ते हि शताधिकाः। चर्चाऽत्र संभाविष्यति ॥ 11 दृश्यते जैन शास्त्राणाम्।
तिजाराक्षेत्र सम्बद्धाः तलं येषु हि सर्वतः॥8
सर्वे पदाधिकारिणः। लब्ध्वा तल्लेखनी स्पर्शम् योग्यास्ते धन्यवादस्य, प्रतिभा शालिनः कवेः।
अस्माकं विदुषामिह ॥ 12 कविता सफला जाता।
येषां तत्त्वावधानेऽत्र यथास्ति ममभावना ॥9
संगोष्ठी विदुषामियम्। दुर्भाग्यादेव सोऽस्माभिः।
श्री जुगल किशोरस्य युगवीरो विस्मारितः।
साहित्यं चिन्तयिष्यति ।। 13 तत्स्मरणार्थमेवेयम्।
भवन्ति धर्मकार्याणाम्। संगोष्ठ्यत्र हि विद्यते॥ 10
प्रवृत्तयो निरन्तरम्। विद्वांसोऽत्र वयं सर्वे
तिजारा तीर्थक्षेत्रेऽस्मिन् सहलेखैरिहागतः।
हर्षस्य विषयो महान् ॥ 14
डॉ. प्रेमचन्द्र रांवका प्रोफेसर, राजकीय आ संस्कृत कॉलेज, बीकानेर श्री १००८ चन्द्रप्रभ दि. जैन अतिशय क्षेत्र देहरा (तिजारा) अलवर (राज.) द्वारा पं. जुगल किशोर मुख्तार के व्यक्त्वि एवं कृतित्व पर दि. 30/ 10 से 1/11/98 तक आयोजित त्रिदिवसीय विद्वत्संगोष्ठी, परमपूज्य उपाध्याय 108 श्रीज्ञानसागरजी महाराज के सान्निध्य को पाकर अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई
पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार मा भारती के वरद् पुत्र थे। उनका अधिकांश समय मां जिनवाणी की आरती में व्यतीत हुआ। गृहस्थ जीवन के नाना अवरोधों के मध्य रहते हुए भी पं. श्री मुख्तार सा. साहित्य-सृजन में अग्नि में स्वर्ण सदृश देदीप्यमान रहे। उनका जीवन साहित्य देवता की अर्चना में संलग्न रहा। ऐसे प्रेरणापुञ्ज युगवीर जी के व्यक्त्वि एवं कृतित्व पर संगोष्ठी