________________
xxxii
प जुगलकिशोर मुखबार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व
"युगवीर" पंडित जुगल किशोर जी मुख्तार का जैन समाज पर बहुत बड़ा उपकार है। बीसवीं सदी में सामाजिक, धार्मिक और नैतिक जागति के वे दूत थे। इतने समर्पण के बाद भी अज्ञानवश यह सम्मान उन्हें जानते हुए भी उनसे अपरिचित है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों को समाज के सामने लाकर धूमिल पड़े उनके आईने को साफ करना अति आवश्यक है।
लिखित सामग्री तो बहुत है जो अलमारियों में दबी-छिपी धूल खा लेती है। बिरला कोई सरस्वती पुत्र उसे हाथ लगाकर प्रसाद पाता है। किंतु संगोष्ठी के माध्यम से विद्वान् जो सामग्री चुन-चुन कर सामने लाते हैं और जिस प्रकार प्रत्येक पक्ष को समुचित रूप से प्रस्तुत करते हैं। उससे श्रोता को बहुत लाभ मिलता है। यही इस संगोष्ठी की उपलब्धि है।
जैन साहित्य की अनुपम देन 'आगम' उनकी प्राकृत भाषा और गूढ़ अर्थ के कारण वे गिने-चुने ज्ञानियों और तपस्वियों की निधि रह गए हैं। वे आगम, जो कभी जन-जन द्वारा बोली जाने वाली भाषा में लिखे गए, प्रत्येक भाषा-भाषी द्वारा समझे गए, आज अपनी अनुपम धरोहर को मूक संजोए बैठे हैं। विद्वानों और पूर्वाचार्यों द्वारा उनका किया गया अनुवाद और टीकायें भी जिनशासन की भाषा और सिद्धांत की अनभिज्ञता के कारण आज का सहज हिंदी भाषा सामान्य व्यक्ति नहीं समझ पाता है। इसी कारण न तो पूजा और भक्ति का सही अर्थ समझता है न ही सैद्धांतिक गहराईयों को पकड़ पाता है। ऐसी स्थिति में मुख्तार जी की सामान्य हिंदी में लिखी गई रचनाएँ 'मेरी भावना' तथा अन्य जन-जन के मुंह मे विराज गई हों तो कोई आश्चर्य नहीं है। उनकी रचनाओं में जो भावात्मक मार्गदर्शन पाठक को मिलता है वह अनुकरणीय होता है। पाठक को अंतरंगता से ने भक्ति के भावों में डुबोता है।
आवश्यकता आज ऐसे ही धर्म साहित्य की है जो सहज बोधगम्य हो और आस्था की गहराईयों को छुए। पंडित जी को अपनी कृतज्ञता का ज्ञापन देकर संगोष्ठी के माध्यम से समाज ने चिन्तकों एवं लेखकों को न केवल प्रोत्साहन दिया है बल्कि आज की आवश्यकता के प्रति सचेत भी किया है। उनका जन्म दिवस प्रतिवर्ष मनाया जावे तो उचित है।