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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास इस काव्य के परिवेश में कवि ने अपने समय में प्रचलित सामाजिक रीतिरिवाजों, अन्धविश्वासों, विवाहविधि आदि को देकर तत्कालीन समाज का परिचय दिया है ।
कवि को अपनी अन्यतमकृति 'वालभारत' में जैनधर्म के सिद्धान्तों-नियमों के निरूपण करने का अवसर नहीं मिला था पर इस काव्य में उनके निरूपण को प्रमुख स्थान दिया गया है। धार्मिक चर्चा द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और तेरहवें सर्ग में देखी जा सकती है। ____ काव्य में विविध रसों और अलंकारों की योजना अनेक स्थलों पर सुन्दर ढंग से की गई है। भाषा-पाण्डित्य को प्रकट करने के लिए यमक और अनुप्रास का प्रयोग अधिक मात्रा में किया गया है। अर्थालंकारों में मालोपमा, अर्थान्तरन्यास और रूपक की योजना अनेक स्थलों पर हुई है। अन्य अलंकारों में असंगति, मुद्रादीपक, विषम, सहोक्ति, विरोध, परिवृत्ति के भी सुन्दर प्रयोग
इस काव्य के अधिकांश सर्गों में एक छन्द का प्रयोग हुआ है और सर्गान्त में छन्द बदल दिये गये हैं। १४-१५ वें सर्गों में विविध छन्दों का प्रयोग भी हुआ है। पद्मानन्द काव्य में ३४ छन्दों का प्रयोग हुआ है उनमें से अनेक ऐसे छन्द हैं जिनका प्रयोग अन्यत्र कम ही हुआ है जैसे सुन्दरी, मेघविस्फूर्जिता, चन्द्रिणी, प्रबोधिता, उत्थापिनी आदि ।
रचयिता और रचनाकाल-इस काव्य के लेखक सुप्रसिद्ध कवि अमरचन्द्रसूरि हैं। इस काव्य की एक हस्तलिखित प्राचीन प्रति सं० १२९७ की मिलती है। इस प्रति से वह सिद्ध होता है कि यह उस समय से पूर्व रची गई होगी। इस काव्य की रचना वीसलदेव (सं० १२९४-१३३८) के राज्यकाल में उसके मंत्री पर के अनुरोध पर की गई थी। इससे वीसलदेव के प्रथम राज्यवर्षे सं० १२९४.
१. सर्ग ९.७१,७३-१०२, २.१७७. २. वही, सर्ग २.१०; १५.६७, ७३-७४, १०६-१०७ भादि. ३. वही, सर्ग २.२४, ७३, १६६; ४.५७, ५८, १००, १८५, २१६, २४०,
६.१०३, १२.६७, १६.७१ भादि. १. पीटर्सन की प्रथम रिपोर्ट, पृ० ५८ तथा पमानन्द की अंग्रेजी भूमिका,
पृ० ३४. ५. पद्मानन्द, सर्ग १.९, श्लोक ६०-६१.
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