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पौराणिक महाकाव्य
प्रभावककथा-यह प्रभावकचरित के समान ही कुछ प्रभावशील आचार्यो के जीवन पर लिखा गया ग्रन्थ है। इसमें लेखक ने अपने छः गुरु-भ्राताओंउदयनन्दि, चारित्ररत्न, रत्नशेखर, लक्ष्मीसागर, विशालराज और सोमदेवका चरित दिया है। ___ अन्धकार और रचनाकाल-इस ग्रन्थ के कर्ता प्रसिद्ध तपागच्छीय आचार्य मुनिसुन्दरसूरि के शिष्य शुभशीलगणि हैं। इसकी रचना वि० सं० १५०४ में हुई है। इसके पूर्व ग्रन्थकार ने वि० सं० १४९०-९९ के बीच विक्रमचरित्र तथा बाद में वि० सं० १५०९ में विशाल कथाग्रन्थ पंचशतीप्रबोधप्रबंध अर्थात् भरतेश्वरबाहुबलिवृत्ति की रचना की है।
प्रभावक आचार्यों के स्वतंत्र चरित्र भी उपलब्ध होते हैं।
दिग०-श्वेता० संघ के इतिहास में भद्रबाहु का महत्वपूर्ण स्थान है। वे चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन माने जाते हैं । दिग० परम्परा में उन्हें अन्तिम श्रुतकेवली कहा गया है। इनका चरित्र प्राचीन ग्रन्थों में दिया गया है। कई कथाकोशों में भी इनके चरित्र का वर्णन है। स्वतंत्र चरित्र के रूप में भी एक-दो रचनाएँ मिलती हैं।
__ भद्रबाहुचरित-यह चार अधिकारों में विभक्त संस्कृत ग्रन्थ है।' अधिकारों में क्रमशः १२९, ९३, ९९ और १७७ श्लोक हैं। इसमें दिग० मान्यतानुसार भद्रबाहु का चरित्र दिया है। ग्रन्थकार ने अपने पूर्ववर्ती देवसेन और हरिषेण द्वारा प्रतिपादित कथाओं को सम्बद्धकर यह चरित्र लिखा है इससे
१२-१३वीं शताब्दी के पुरुषों की जीवनियों को भी चरित्र कहा गया है। प्रबंधों के विषय यद्यपि अर्ध ऐतिहासिक या ऐतिहासिक व्यक्ति ही हैं फिर भी उनके लिखे जाने का ध्येय था 'धर्मश्रवण के लिए एकत्र हुई समाज को धर्मोपदेश देना, जैन धर्म के माहात्म्य को बतलाना, साधुओं को समयानुकूल उपदेश की सामग्री देना और श्रोताओं का चित्त-विनोद करना' । इसलिए प्रबंधों को वास्तविक इतिहास या जीवन-चरित नहीं
समझना चाहिये। १. जिनरत्नकोश, पृ० २६६. २. जिनरत्नकोश, पृ० २९१; जैन भारती भवन, बनारस, वी० सं० २४३७,
पं० उदयलाल कासलीवालकृत हिन्दी अनुवाद.
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