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ऐतिहासिक साहित्य उल्लेख मिलता है। जिस गृहस्थ की प्रेरणा से इस चरित्र की रचना की गई थी वह कुमारपाल के महामात्य यशोधवल का पुत्र जगदेव था। वह वराही का निवासी श्रीमाल वैश्य था। वह अच्छा विद्वान् था और बालपन से कविता करता था । हेमचन्द्राचार्य ने उसे बालकवि की पदवी दी थी। वह बालकवि के नाम से सर्वत्र ख्यात था। उसका एक घनिष्ठ मित्र निर्नय मन्त्री ब्राह्मण था। उसका पिता रुद्रशर्मा कुमारपाल का राजज्योतिषी था । मन्त्री निर्नय और एक अन्य भट्ट सूदन दोनों राजमान्य ब्राह्मण थे और जैनधर्म के प्रति खूब सहानुभूति रखते थे। मुनिरत्न की इस कृति का संशोधन राज्य के वरिष्ठ न्यायाधीश कवि कुमार ( कवि सोमेश्वर के पिता) ने किया था और इसकी प्रथम हस्तलिपि गुजेर मन्त्री उदयराज के विद्वान् पुत्र सागरचन्द्र ने लिखी थी और इस चरित्र का प्रथम श्रवण वैयाकरणाग्रणी पं० पूर्णपाल और यशःपाल तथा स्वयं बालकवि ( जगदेव) तथा आमण और महानन्द नामक सभ्यों ने किया था। पश्चात् बालकवि ने इस ग्रन्थ की अपने खर्च से अनेक प्रतियाँ बनवाकर विद्वानों. को भेंट की थीं।
इस प्रशस्ति में समागत महामात्य यशोधवल का उल्लेख सं० १२१८ के. कुमारपालसम्बन्धी एक लेख में आता है। गुर्जर राज्यपुरोहित कवि सोमेश्वर का पिता कवि कुमार भीम द्वितीय के समय सं० १२५५ में गुजरात का वरिष्ठ न्यायाधीश था, यह प्रशस्ति से नई बात मालूम होती है। जैन विद्वान् और राजा के अग्रगण्य ब्राह्मण विद्वानों में परस्पर बहुत सहानुभूति और मित्रता थी, इस बात का सुन्दर उदाहरण इस प्रशस्ति से मिलता है। ___ यहाँ प्रशस्तियों का महत्त्व बतलाने के लिए हमने कुछ ही प्रशस्तियों का विवरण प्रस्तुत किया है। इस प्रकार की अनेक प्रशस्तियों का हमने यत्र-तत्र संकेत भी किया है। इनकी संख्या बहुत बड़ी है।
ग्रन्थकारप्रशस्ति के अतिरिक्त पुस्तकप्रशस्ति भी बड़े महत्त्व की है। उस काल में ज्ञानप्रिय गृहस्थों ने ताड़पत्र, कागज आदि पर पुस्तकों को लिखाकर संग्रह करने में हजारों-लाखों रुपया खर्च किया था और बड़े-बड़े सरस्वती भण्डार स्थापित किये थे। उन गृहस्थों के सुकृत्यों की स्मारक प्रशस्तियाँ इन पुस्तकों के साथ दी गई हैं। ये पुस्तकप्रशस्तियाँ १२वीं शताब्दी के प्रारम्भ से गुजरात में लिखे गये ग्रन्थों में अधिकतर पाई जाती हैं। इनसे सिद्धराज, कुमारपाल, भीमदेव, वीसलदेव, अर्जुनदेव, सारंगदेव आदि के राज्य, उनके राज्याधिकारियों
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