________________
५८
ललित वाङ्मय ६. निर्भयभोमव्यायोग:
यह एक अंक का रूपक' है जिसे 'व्यायोग' कहते हैं। इसमें महाभारत में वर्णित बकासुर के वध को कथावस्तु बनाया गया है। इसमें भीम एक ब्राह्मण युवक को राक्षस बक के चंगुल से छुड़ाता है और स्वयं अपने को बलिरूप में प्रस्तुत कर बकासुर का वध कर देता है ।
यह व्यायोग भास के मध्यम व्यायोग जैसा है। यद्यपि दोनों के घटनाप्रसंग भिन्न हैं पर नायक भीम दोनों में एक है । वध्य ब्राह्मण की माता और पत्नी का करुण क्रन्दन श्रीहर्ष के नागानन्द की याद दिलाता है।
यह रचना बड़ी सरल और प्रसादपूर्ण है। इसमें जिज्ञासा तथा कौतूहल क्रमशः बढ़कर चरम बिन्दु पर पहुँचे हैं । इसमें अरस्तू के सिद्धांत संकलनत्रय स्थान की एकता, समय की एकता और घटना की एकता-का पूरी तरह पालन हुआ है। ७. रोहिणीमृगांक: ____ यह रामचन्द्रसूरि का अन्यतम प्रकरण' है जो अनुपलब्ध है। इसे 'नाट्यदर्पण' में दो स्थलों पर उद्धृत किया गया है। प्रकरण होने से इसकी कथावस्तु कल्पित ही है। इसका विषय रोहिणी और मृगांक के प्रणय का वर्णन मालूम होता है। ८. राघवाभ्युदय :
राम की कथा पर आधारित यह एक नाटक है जो अनुपलब्ध है। रामचन्द्रसूरि ने इसका अपने नाट्यदर्पण में १० बार उल्लेख किया है । बृहट्टिप्पणिका में कहा गया है कि इस नाटक में १० अंक हैं। राम की कथा पर आधारित इस कवि का दूसरा नाटक रघुविलास भी है पर दोनों का घटनाप्रसंग भिन्न है। रघुविलास में राम के वनवास और सीता-मिलन की घटना है तो राघवाभ्युदय में सीता के स्वयंवर की घटना है । ज्ञात होता है कि रघुविलास से पहले राघवाभ्युदय की रचना हुई थी क्योंकि रघुविलास की प्रस्तावना में रामचन्द्रसूरि की पाँच उत्तम कृतियों में इसका भी उल्लेख है।
१. जिनरस्नकोश, पृ० ३१४; यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, संख्या १९, वाराणसी,
वी०सं० २४३७. २-३. नाट्यदर्पण : ए क्रिटिकल स्टडी, पृ० २३२-२३३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org