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शुद्धि-वृद्धिपत्र
पृ० ९६ ९६
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पं० अशुद्ध शुद्ध १९ पद्यप्रभ
पद्यप्रभ पद्यनाभ ( भावी प्रथम तीर्थकर ) १९-२३
भावी प्रथम तीर्थकर के चरित हैं, न कि
छठे तीर्थंकर पद्यप्रभ के। ५
इन्द्रहंसगणिकृत रचना विमल मंत्री से
सम्बद्ध है, न कि विमलनाथ तीर्थंकर से। १६
इसके रचयिता भट्टा० सकलकीर्ति हैं
जिनका परिचय पहले दिया गया है। २१
उदयप्रभकृत नेमिनाथचरित धर्माभ्युदय काव्य का ही अंश है, कोई स्वतंत्र
काव्य नहीं। १५ कीर्तिराज उपाध्याय यही आगे कीर्तिरत्नसूरि हुए और सं०
१४९५ ही ग्रन्थरचनाकाल है। भट्टारक युग में प्रथम भावी तीर्थंकर पद्मनाभ पर कई रचनाएँ लिखी गईं। इनकी अन्य रचना मुनिसुव्रतचरित है। स्वीडिश भाषा में भी इसका अनुवाद
प्रकाशित हुआ है। अशोकचन्द्र ( यह रोहिणी-अशोकचन्द्रनृपकथा का
पात्र है।) १८ अजापुत्र
( अष्टम तीर्थंकर के प्रथम गणधर ) पुरुदेवचम्पू के पहले १२वीं शती में जिनभद्रसूरि ने एक मदनरेखाख्यायिकाचम्पूलिखा था। यह प्रकाशित हो चुका है। भूल से परिचय नहीं दिया। पृ० ३५२ में इसका उल्लेख अन्य प्रसंग में किया गया है।
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