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ललित वाङ्मय
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गया था । इस नाटक में सपादलक्ष या शाकम्भरी ( आधुनिक सांभर - राजस्थान ) के नृप अर्कोराज पर कुमारपाल की विजय और अर्णोराज की भगिनी से उसके विवाह का वर्णन है ।
इसकी नायिका चन्द्रलेखा एक विद्याधरी है ।
रचयिता एवं रचनाकाल - इसके रचयिता हेमचन्द्राचार्य के शिष्य देवचन्द्र हैं।' इसकी रचना में उन्होंने शेष भट्टारक से सहायता ली थी। इनकी दूसरी रचना मानमुद्राभञ्जन नाटक' है जो सनत्कुमार चक्रवर्ती और विलासवती को लेकर रचा गया है परन्तु वह उपलब्ध नहीं है ।
प्रबुद्ध रौहिणेय :
यह ६ अंकों का नाटक है । इसमें भगवान् महावीर के समकालिक राजगृहनरेश श्रेणिक के राज्यकाल के प्रसिद्ध चोर रौहिणेय के प्रबुद्ध होने का वर्णन किया गया है ।" इसकी रचना पार्श्वचन्द्र के पुत्र व्यापारशिरोमणि दो भ्राता यशोवीर और अजयपाल के अनुरोध से की गई थी और लगभग वि० सं० १२५७ में यह उनके द्वारा बनवाये जालौर के आदीश्वर जिनालय के यात्रोत्सव पर खेला
गया था ।
हेमचन्द्र ने अपने योगशास्त्र में रौहिणेय की कहानी दृष्टान्तरूप में दी है।
रचयिता एवं रचनाकाल - इसके रचयिता प्रसिद्ध तार्किक देवसूरि ( वि० सं० १२२६ में स्वर्गवासी ) सन्तानीय जयप्रभसूरि के शिष्य रामभद्र हैं । इनके सम्बंध में विशेष कुछ ज्ञात नहीं है ।
जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २००.
9.
२ . वही; जिनरत्नकोश, पृ० ३०९.
३.
जैन आत्मानन्द सभा, संख्या ५०, भावनगर, वि०सं० १९७४; जिनरत्नकोश, पृ० २६५; ए० बी० कीथ, संस्कृत ड्रामा, लन्दन, १९५४, पृ० २५९-६०, इसका गुजराती अनुवाद संस्कृत नाटक, भाग २, पृ० ३७७-७८ में है । ४. इसका परिचय 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' में पृ० ३२५ में दिया
गया है ।
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