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पिता के पांचवें पुत्र थे। उनके शेष भाई उदयभूषण और वर्धमान भी कवि ही थे
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
श्रीकुमार, सत्यवाक्य, देवरवल्लभ, पर उनसे हम प्रायः अपरिचित हैं ।
हस्तिमल्ल के विरुद थे सरस्वतीस्वयंवरवल्लभ, महाकवितल्लज और सूक्तिरत्नाकर । राजावलीकथा के कर्ता ने कवि को उभयभाषाकविचक्रवर्ती लिखा है ।
हस्तिमल्ल स्वयं गृहस्थ थे । उनके वंशज ब्रह्मसूरि ने अपने प्रतिष्ठासारोद्धार में कवि के पुत्र-पौत्रादि का वर्णन किया है और उनका निवासस्थान गुडिपत्तन ( तंजौर का दीपगुडि ) बतलाया है ।
हस्तिमल्ल का असली नाम क्या था, इसका पता नहीं है । यह विरुद उन्हें पाण्ड्य राजा की ओर से मिला था । पाण्ड्य राजा का उल्लेख कवि ने कई स्थानों पर किया है पर वे पाण्ड्य राजा कौन थे और उनकी राजधानी कहाँ थी, कहीं उल्लेख नहीं मिलता है ।
हस्तिमल्ल का समय कर्नाटककविचरित्र के कर्ता आर० नरसिंहाचार्य ने सन् १२९० ई० अर्थात् वि० सं० १३४८ निश्चित किया है । स्व० पं० जुगलकिशोर मुख्तार ब्रह्मसूरि को विक्रम की १५वीं शताब्दी का विद्वान् मानते हैं, और हस्ति मल्ल उनके पितामह के पितामह थे, इससे १०० वर्ष पूर्व हस्तिमल्ल का समय चौदहवीं शताब्दी अनुमान किया जा सकता है ।
हस्तिमल्ल के अर्जनापवनंजय, सुभद्रानाटिका, विक्रान्तकौरव और मैथिलीकल्याण ( त्रोटक ) ये चार दृश्यकाव्य प्रकाशित हो चुके हैं। इनके द्वारा रचित उदयनराज, भरतराज, अर्जुनराज और मेघेश्वर इन चार नाटकों का उल्लेख और मिलता है । अन्य रचना 'प्रतिष्ठातिलक' का भी उल्लेख मिलता है। और सम्भवतः यह प्रति आरा के सिद्धान्तभवन में है। इनके कन्नड भाषा में लिखे आदिपुराण ( पुरुचरित) और श्रीपुराण नाम के दो ग्रन्थ भी उपलब्ध हुए हैं।
यहां उक्त कवि द्वारा रचित ४ दृश्यकाव्यों का परिचय दिया जाता है ।
१. विशेष परिचय के लिए 'अञ्जनापवनंजय' ( माणिकचन्द्र दिग० जैन ग्रन्थमाला, बम्बई ) की अंग्रेजी प्रस्तावना, पृ० ५.१४ तथा हिन्दी प्रस्तावना, पृ० ६३-६८ देखें |
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