Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 614
________________ ललित वाङ्मय ६०१ परिचय द्रष्टव्य है । रचना अपूर्ण होने से इसका रचनाकाल ज्ञात नहीं हो सका। ज्ञानचन्द्रोदयनाटक : इसकी विषयवस्तु ज्ञात नहीं हो सकी पर यह श्रीकृष्ण मिश्र के प्रबोधचन्द्रोदय के उत्तर में लिखा हुआ नाटक लगता है । इसके रचयिता सम्राट अकबरकालीन पद्मसुन्दर हैं । इनकी अन्यतम रचना ' रायमल्लाभ्युदयकाव्य' के प्रसंग में हम इनका परिचय दे आये हैं । इनका साहित्यिक काल वि०सं० १६२६ से १६३९ है । ज्ञानसूर्योदयनाटक : यह एक संस्कृत नाटक है । यह भी श्रीकृष्ण मिश्र के प्रबोधचन्द्रोदय के उत्तर में लिखी कृति है । प्रबोधचन्द्रोदय में क्षपणक ( दिग० जैन मुनि ) पात्र को बहुत ही निन्दित एवं घृणित रूप में चित्रित किया गया है । शायद उसी का बदला चुकाने के लिए इसकी रचना की गई है। दोनों रचनाओं में बहुतकुछ साम्य है । पात्रों के नामों में प्रायः साम्य है, इसके साथ एक ही आशयवाले बीसों पद्य और गद्यवाक्य थोड़े से शब्दों के हेरफेर के साथ मिलते हैं । ज्ञानसूर्योदय की अष्टशती प्रबोधचन्द्रोदय की उपनिषत् है । काम. क्रोध. लोभ, दंभ, अहंकार, मन, विवेक आदि एक से हैं । ज्ञानसूर्योदय की दया प्रबोधचन्द्रोदय की श्रद्धा ही है । दोनों क्रमशः दया और श्रद्धा का गुमना बताते हैं । ज्ञानसूर्योदय में अष्टशती का पति 'प्रबोध' है और प्रबोधचन्द्रोदय में उपनिषत् का पति 'पुरुष' है । ज्ञानसूर्योदय के कर्ता ने प्रबोधचन्द्रोदय के समान ही बौद्धों का उपहास किया है और क्षपणक के स्थान में सितपट को खड़ा कर श्वेताम्बर वर्ग का भी । संभव है कि यह 'मुद्रित कुमुदचन्द्र' की प्रतिक्रिया में किया गया हो । कर्ता एवं समय - - इसके रचयिता वादिचन्द्र हैं जो मूलसंघ के भट्टारक ज्ञानभूषण के प्रशिष्य और प्रभाचन्द्र के शिष्य थे। इन्होंने उक्त नाटक को माघ 9. कुछ विद्वान् उक्त सड़क को जैन कवि नयचन्द्र की रचना मानने को तैयार नहीं हैं। २. जिनरत्नकोश, पृ० १४७. ३. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३८५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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