________________
६०४
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ४. सुबोधिनी-गुणरत्न (वि० सं० १६६७ ) ५. अर्थालापनिका-समयसुन्दर (वि० सं० १६९२ ) ६. टीका-जिनसमुद्रसूरि ( १६वीं शती) ७. सुबोधिनी-धर्ममेरु ( १७वीं शती ) ८. सुगमान्वया-सुमतिविजय (वि० सं० १६९८) ९. टीका-श्रीविजयगणि १०. टीका-पुण्यहर्ष ( १८वीं शती)
दूसरे काव्य कुमारसम्भव पर निम्नांकित टीकाएं जैन विद्वानों द्वारा लिखी गई हैं :
१. कुमारतात्पर्य--चारित्रवर्धन ( १६वीं शती) २. टीका-क्षेमहंस ( १६वीं शतो ) ३. अवचूरि-मित्ररत्न (वि० सं० १५७४ ) ( सात सर्ग पर्यन्त ) ४. टीका-धर्मकीर्ति ( दिगम्बर ) ५. टीका-जिनसमुद्रसूरि ( १६वीं शती ) ६. टीका-लक्ष्मीवल्लभ (वि० सं० १७२१) ७. टीका–समयसुन्दर ( १७वौं शती) ८. टीका-जिनवल्लभसूरि ९. टीका-कुमारसेन १०. वृत्ति-कल्याणसागर ११. बालबोधिनी-जिनभद्रसूरि ( १५वीं शती)
महाकवि कालिदास के खण्डकाव्य मेघदूत' पर भी बहुत-सी जैन टीकाएं मिलती हैं यथा:
१. जिनरत्नकोश, पृ० ९३; मणिधारी जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति.
ग्रन्थ, द्वितीय खण्ड, पृ० २२. २. जिनरत्नकोश, पृ० ३१३-१४; मणिधारी जिनचन्द्रसूरि अष्ठम शताब्दी
स्मृतिग्रन्थ, द्वितीय खण्ड, पृ० २४; समयसुन्दरोपाध्याय ने मेघदूत के प्रथम पद्य के तीन अर्थ किये हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org