________________
ललित वाङ्मय
इस नाटक की रचना भग० शान्तिनाथ के जन्मकल्याण के पूजा महोत्सव के दिन खेलने के लिए की गई थी ।
रम्भामंजरी :
यह एक सहक' है जो कि असम्पूर्ण है । इसकी केवल तीन ही यवनिकाएं उपलब्ध हैं । इसे भूल से हस्तलिखित और छपी प्रति में नाटिका कहा गया है'समाप्ता रम्भामंजरी नाटिका' । लेखक ने तो नट और सूत्रधार के माध्यम से इसे सही कहा है ।
५९९
इसका कथानक छोटा है । तदनुसार बनारस का राजा पंगु उपनामधारी जैत्रचन्द्र या जयचन्द्र सात रानियों के होने पर भी अपने को चक्रवर्ती सिद्ध करने के लिए लाटनरेश देवराज की पुत्री रम्भा से विवाह करता है ।
यह विश्वनाथ की यात्रा में एकत्रित लोगों के मनोरंजनार्थ राजा की इच्छा से अभिनयार्थ लिखा गया था । इसमें जैत्रसिंह के पिता का नाम मल्लदेव और मां का नाम चन्द्रलेखा लिखा है ।
लेखक नयचन्द्र ने इस कथानक को अन्यत्र से लेने का एकाधिक बार संकेत किया है । इसके पूर्व जैत्रचन्द्र का कुछ वर्णन प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातन प्रबन्धसंग्रह एवं प्रबन्धक्रोश में मिलता है । उनमें उसे वाराणसी का राजा तो लिखा है पर उसके पिता के नाम के सम्बन्ध में एकमत नहीं है । उसकी सात रानियों तथा वभा के विषय में प्रबन्धों में कोई उल्लेख नहीं है । राजा का उपनाम 'पंगु' या 'पंगुर' था, यह प्रबन्धों में भी पाया जाता है और उसकी जो व्याख्या रम्भामंजरी में दी गई है लगभग वैसी ही प्रबन्धों में भी दी गई है । इससे
१. जिनरत्नकोश, पृ० ३२९; रामचन्द्र शास्त्री और बी० केवलदास ने निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से सन् १८८९ में इसे प्रकाशित किया है। इस सट्टक की यवनिकाओं की विषयवस्तु के लिए देखें - डा० जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ६३३, डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, प्राकृत भाषा और साहित्य का भालोचनात्मक इतिहास, पृ० ४२६-३१; डा० आ० ने० उपाध्ये, 'नयचन्द्र और उनका ग्रन्थ रम्भामञ्जरी', प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ,
पृ० ४११.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org