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ललित वाङ्मय
इसका कथानक जैन-जगत् में सुप्रसिद्ध है । कथावस्तु का आधार जिनसेनकृत आदिपुराण है जिसमें ४३ से ४५ पर्यों में जयकुमार-सुलोचना का वर्णन है। हस्तिमल्ल ने आदिपुराण के कथानक का पूरी तरह अनुकरण किया है । केवल नामों में कुछ परिवर्तन है। आदि पुराण में कंचुको राजाओं का वर्णन करता है पर यहां प्रतीहार का नाम दिया है । आदिपुराण में अकंपन की दूसरी पुत्री का नाम लक्ष्मीमती या अक्षमाला है जबकि यहां रत्नमाला | शेष कथानक प्रायः मिलता-जुलता है । इसे नाटकीय रूप में परिवर्तित करने में हस्तिमल्ल ने अपूर्व कौशल दिखाया है । इसमें पद्यों की बहुलता के कारण घटनाप्रवाह में बाधा उपस्थित हुई है पर वैसे सभी संवाद अच्छे हैं। वे सुभाषितों और मुहावरों से भरे हुए हैं। प्राकृत में निर्मित संवाद कहीं-कहीं लम्बे प्रतीत होते हैं। इसमें अनेक नूतन शब्दों का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक हुआ है, यथा-निष्कुट (गृहाराम), गोसर्ग (प्रभात ), पारी, वीटी (पान का बीड़ा), सहसान (मयूर), आन्दोलिका (डोली या शिविका ), निष्टाप ( भयानक गर्मी ), संपेट ( क्रुद्ध), अभिसार ( आक्रमण ) आदि । मैथिलीकल्याण :
इस नाटक में पांच अंक हैं तथा सोता और राम के स्वयंवर का वर्णन है।
प्रथम चार अंकों में राम-सीता के प्रथम मिलन, आकर्षण, विरह, कामवेदना आदि का वर्णन है । पांचवें में सीता के स्वयंवर की तैयारी होती है। स्वयंवर में राम वज्रावर्त नामक दिव्यधनुष को तोड़ते हैं और सीता वरमाला डालती है । दोनों का विवाह उत्सवपूर्वक होता है।
सोता के स्वयंवर का वर्णन विमलसूरि के पउमचरिय के उद्देश ३८ में और रविषेण के पद्मपुराण, पर्व ३८ में तथा स्वयम्भू के पउमचरिउ ( सन्धि २१) में दिया गया है । उक्त जैन पुराणों के अनुसार राजा जनक अपने राज्य की रक्षा के उपलक्ष्य में सोता का विवाह राम से करना चाहता है। नारद सीता के घर में आकर उससे निरादर पा उससे बदला लेने की भावना से इस विवाह में बाधक बनता है । वह जनक का अपहरण कराता है और विद्याधरों द्वारा प्रदत्त धनुष
१. जिनरत्नकोश, पृ० ३।५; माणिकचन्द्र दिग० जैन ग्रन्थमाला, पुष्प ५, बम्बई,
१९७३, इसका सार तथा समीक्षा 'अंजनापवनंजय' की भूमिका में प्रो. पटवर्धन ने देकर इसमें आये सभी मुहावरों का संकलन किया है
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