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कलित वाजाय पूर्व पतियों से प्राप्त धन को लेकर लंका भाग जाने का और अपने पिता से सर्पदंश का मंत्र सीखने का प्रस्ताव रखा । दोनों का विवाह होता है । मित्राणन्द कुलपति से सर्पदंश का मंत्र सीखता है। कवि भावी घटनाओं को द्वयर्थक पद्यों से सूचित करता है । चतुर्थ अङ्क में दोनों लंका की राजधानी रंगशाला में आते हैं। नगर में प्रवेश करते ही मित्राणन्द चोर के रूप में पकड़ा जाता है
और उसे गदहे पर बैठाकर नगर में घुमाया जाता है। उसका शरीर रक्तचन्दन से लेपा जाता है। पांचवें से लेकर दसवें अङ्क तक यह पूरा प्रकरण अनेक अलो. किक वातावरणों एवं घटनाओं से पूर्ण है जो कि एक-दूसरे से शिथिल रूप में सम्बद्ध हैं । सातवें अङ्क में एक वणिकपुत्री सुमित्रा सामने आती है जो कि मकरन्द की प्रेमिका बन जाती है। मित्राणन्द-कौमुदी और मकरन्द-सुमित्रा अनेक घटनाचक्र पार कर अन्त में आनन्दपूर्वक समागम करते हैं। हास्य रस की कमी को कवि ने प्रचुर मात्रा में प्रदर्शित अद्भुत रस से पूरी की है।
डा० कीथ ने इस प्रकरण की आलोचना में कहा है कि यह कृति पूर्णरूप से अनाटकीय है, इसमें कई कथाप्रसंगों को नाटकरूप में गठित किया गया है, परिणामस्वरूप यह आधुनिक मूकनाटक ( Pantomime ) जैसा ही है। आगे चलकर उन्होंने कहा है कि इस रचना में दर्शकों में अद्भुत रस जाग्रत करने वाले अनेक चमत्कारों के सिवाय और किसी प्रकार का रस नहीं है। इसी तरह डा० डे ने कहा है कि इसकी कथा दण्डी के दशकुमारचरित जैसी है और लेखक को उसी रूप में लिखने का प्रयत्न करना था। नाटकीय कृति के रूप में इसमें कोई अधिक तत्व नहीं और न साहित्यिक दृष्टि से भी कोई उल्लेखनीय कृति है। पश्चात्कालीन इस जैसे प्रकरणों में नाटकीय प्रसंगों की अपेक्षा जटिल कथानक ही विशेष देखे जाते हैं।' ५. रघुविलास:
यह ८ अंकों का नाटक है। इसमें राम के वनवास और सीता-मिलन की
१. ए० बी० कीय, संस्कृत ड्रामा, पृ० २५८-५९, गुजराती अनुवाद, भा० २, __ पृ० ३७६-३७७. २. सु० कु. डे, हिस्ट्री माफ संस्कृत लिटरेचर, पृ० ४७५-७६. ३. जिनररनकोश, पृ. ३२६; इसके अकों के संक्षित परिचय के लिए देखें-के.
एच० त्रिवेदी, नाव्यदर्पण : ए क्रिटिकल स्टडी, पृ० २२८.
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