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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास विश्वास उत्पन्न करने जैसा था। इस अंक में आते ही हम देखते हैं कि एक गंधमूषिका तापसी की आज्ञा से चित्रांगद और मल्लिका के असली विवाह के पूर्व एक दूसरा विवाहोत्सव होता है जिसमें सामान्य प्रथा के अनुसार मल्लिका
और यचाधिराज से विवाह का अभिनय है। मल्लिका और यक्ष के बीच विवाह सम्पन्न होता है परन्तु यक्षाधिराज में स्वयं मकरन्द प्रकट हो जाता है। अन्त में उस विवाह से सब राजी हो जाते हैं और नाटक की समाप्ति आनन्दपूर्वक मेल में होती है। अन्त में मुद्रालंकार द्वारा रचयिता का नाम ( रामचन्द्र) सूचित किया गया है । यह एक शुद्ध प्रकरण है। ४. कौमुदीमित्राणन्द : ___ यह एक सामाजिक नाटक' है जिसे लेखक ने प्रकरण कहा है। इसमें १० अङ्क हैं । इसमें कौतुकनगरवासी धनी सेठ जिनसेन के पुत्र मित्राणन्द और एक आश्रम के कुलपति को पुत्री कौमुदी के बीच प्रेमकथा का वर्णन है। इसे कौमुदीनाटक भी कहते हैं।
प्रथम अंक में मित्राणन्द अपने मित्र मैत्रेय के साथ समुद्रयात्रा में जाता है और उनका जहाज वरुणद्वीप में टूट जाता है। वहां वे एक सुन्दर कन्या को झूला झूलते पाते हैं । दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाते हैं । मित्राणन्द कुलपति के साथ आता है जो उसका बड़े स्नेह के साथ स्वागत करता है और अपनी पुत्री कोमुदी से विवाह करने का प्रस्ताव करता है। इसी समय वरुण आता है और सब चले जाते हैं । दूसरे अङ्क में मित्राणन्द वरुण के द्वारा वृक्ष में कीलित एक व्यक्ति की रक्षा करता है जो कि एक सिद्ध था। वरुण उसे दिव्य हार भेंट में देता है। ___ तीसरे अङ्क में मित्राणन्द और कौमुदी मिलते हैं।। कौमुदी मित्राणन्द के यौवनरूप और दिव्यहार के कारण उस पर पूर्ण आसक्त है और मित्राणन्द से अपने पिता कुलपति और दूसरों का रहस्य बता देती है कि वे वास्तविक साधु नहीं हैं। प्रत्येक वणिक जिसने उससे विवाह किया उसे विवाहगृह के नीचे ढंके हुए कुएँ में डाल दिया जाता है। इसलिए उसने मित्राणन्द से वहां से अपने
जिनरत्नकोश, पृ० ९६; जैन मास्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९७३; इसके मकों के संक्षिप्त परिचय के लिए देखें-नाट्यदर्पण : ए क्रिटिकल स्टडी, पृ० २२५-२२७.
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