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ललित वाङ्मय
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सप्तसंधान:
मेघविजयगणि के उल्लेखानुसार एक सप्तसंधान महाकाव्य' की रचना अनेक ग्रन्थों के लेखक प्रसिद्ध आचार्य हेमचन्द्र ने की थी जो कि पूर्व में ही लुप्त हो गया था।
उपलब्ध दूसरे सप्तसंधान महाकाव्य की रचना मेधविजयगाणि ने की है। इस काव्य के प्रत्येक श्लेषमय पद्य से ऋषभ, शान्ति, नेमि, पाव और महावीर इन पाँच तीर्थकरों एवं राम तथा कृष्ण इन सात महापुरुषों के चरित्र का अर्थ निकलता है। इस काव्य में ९ सर्ग है। इसका कथानक पूर्ववर्ती रचनाओंत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित आदि से लिया गया है।
कथावस्तु-भरतक्षेत्र में कोशल, कुरु, मध्य और मगध देश नाम के जनपदों में क्रमशः अयोध्या, हस्तिनापुरी, शौर्यपुरी, वाराणसी, मथुरा और कुण्डपुर नगरियाँ हैं। इनमें से अयोध्या में ऋषभदेव और रामचन्द्र का हस्तिनापुरी में शान्तिनाथ का, शौर्यपुरी में नेमिनाथ का, वाराणसी में पार्श्वनाथ का, वैशाली में महावीर का और मथुरा में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था । इन नगरियों में रहने वाले उक्त महापुरुषों के पितृनामों के उल्लेख के पश्चात् उक्त महापुरुषों की माताओं को गर्भधारण के पूर्व स्वप्नदर्शन तथा स्वप्नफलश्रवण के वर्णन के साथ प्रथम सर्ग समाप्त हो जाता है। दूसरे सर्ग में उक्त पाँच तीर्थकरों के जन्म और जन्माभिषेक का वर्णन है। तृतीय में उक्त सात महापुरुषों के बाल्यकाल, युवावस्था और राज्यप्राप्ति का वर्णन है। चतुर्थ सर्ग में तीर्थंकरों के राजा होते ही देश की सम्पत्ति का विकास, ऋषभादि को पुत्रादि की प्राप्ति के वर्णन के साथ श्रीकृष्णकालीन कौरव-पाण्डवों का निरूपण किया गया है। इस सर्ग के अन्तिम भाग में कवि ने श्लेष के आधार पर ऋषम, शान्ति, नेमि, पावं, महावीर और राम की जीवन-घटनाओं का विवेचन किया है। राम अन्तःपुर के षड्यन्त्र के कारण वन जाते हैं, भरत विरक्त होकर राज्यशासन का संचालन करते हैं। तीर्थकर दीक्षा ग्रहण करने की तैयारी करते हैं।
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1. जिनरस्नकोश, पृ. ४१६; अभयदेवसूरि ग्रन्थमाला, बीकानेर; विविध
साहित्य शास्त्रमाला (संख्या ३), वाराणसी, १९.७, जैन साहित्यवर्धक सभा, सूरत, वि० सं० २०००, श्रीमद् विजयामृतसूरीश्वरविरचित 'सरणी' टीकासहित प्रकाशित.
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