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ललित वाचाय
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एतद्विषयक अन्य रचनाओं में रामचन्द्र का सुभाषितकोश, कीर्तिविजय का सुभाषितग्रन्थ, मुनिदेव आचार्य का सुभाषितरत्न कोश ( ५८ कारिकाएं ), सकलकीर्तिकृत सुभाषितरत्नावली या सुभाषितावली ( ३९२ श्लोक ), तिलकप्रभसूरिकृत सुभाषितावली, ज्ञानसागरकृत सुभाषित षट्त्रिंशिका, लुकागच्छ के यशस्त्रीगणिकृत सुभाषितषटत्रिंशिका, धर्मकुमारकृत सुभाषितसमुद्र, शुभचन्द्रः कृत सुभाषितार्णव आदि ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं ।'
स्तोत्र - साहित्य :
जैनों का स्तोत्र - साहित्य प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा अन्य जनपदीय भाषाओं में विपुल राशि में पाया जाता है । उसमें से संस्कृत प्राकृत में ही उपलब्ध विपुलराशि को प्रस्तुत करना शक्य नहीं, और की बात ही अलग, फिर भी उसका यहाँ सिंहावलोकन मात्र किया जा रहा है ।
भारतीय वाङ्मय में स्तोत्र - स्तवन की परम्परा आदि काल से चली आ रही है । इन्द्र, वरुण, उषा आदि के ॠग्वेद में सुरक्षित सुक्त स्तवन ही हैं । सामवेद को गेय स्तोत्रों का संकलन कह सकते हैं । यजुर्वेद और अथर्ववेद में अनेक स्तोत्र द्रष्टव्य हैं। अथर्ववेद का पृथ्वीसूक्त एक राष्ट्रीय स्तोत्र है । रामायण, महाभारत, पुराणादि में प्रचुर मात्रा में स्तोत्र अन्तर्निहित हैं । संस्कृत साहित्य के सभी महाकाव्यों में मंगलाचरण के रूप में या बीच में भी स्तुतियां दी गई हैं। स्वतंत्र रूप से भी कवियों ने अष्टकों, कुलकों, चतुर्दशकों, द्वात्रिंशिकाओं,
त्रिंशिकाओं, चत्वारिंशकों एवं शतकों के रूप में स्तोत्रों की रचना की है । बाणभट्ट का चण्डीशतक, मुरारि का सूर्यशतक और वल्लभाचार्य के यमुनाष्टक प्रसिद्ध ही हैं ।
स्तोत्र-काव्य का स्वतंत्र रूप से प्रारम्भ बौद्धों में हुआ था । कवि मातृ वेट का अध्यर्धशतक सबसे प्राचीन मालूम होता है। उसके बाद पुष्पदन्त का शिवमहिम्नस्तोत्र, मयूर का सूर्यशतक आदि अनेक स्तोत्र - गीतिकाव्य आते हैं।
१. जिनरत्नकोश, पृ० ४४५-४४६.
२. जैन कवियों ने इन विधाओं में अपने अनेक स्तोत्रों की रचना की है। सिद्ध
सेन दिवाकर और रामचन्द्रसूरिरचित द्वात्रिंशिकात्मक तीन प्रसिद्ध ही हैं ।
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