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ललित वाङ्मय १. सत्यहरिश्चन्द्र
रामचन्द्रसूरि ने इसे' अपना आदि रूपक कहा है। इसे नाटक कहा गया है और इसकी कथावस्तु सत्यवादी हरिश्चन्द्र से सम्बद्ध है। इस कथा का आधार महाभारत है पर अभिनय के अनुकूल आवश्यक परिवर्तन किये गये हैं। इसमें ६ अंक हैं। ___ महाभारत में हरिश्चन्द्र स्वप्न में विश्वामित्र को राज्य दे अपने सत्य की परीक्षा में दुःख उठाता है। यहाँ वह एक आश्रम की हरिणी का शिकार करने से उसके प्रायश्चित्तस्वरूप यातनाओं को मोल लेता है। रानी सुतारा और राजपुत्र रोहिताश्व के साथ राजा के निर्वासित होते समय प्रजा के उद्वेग के रूप में कवि जोश में आ जाता है। इस कारुणिक घटना को कवि ने इस ढंग से वर्णित किया है कि भवभूति के उत्तररामचरित का स्मरण हो आता है। चतुर्थ अंक में मांत्रिक द्वारा सुतारा की राक्षसीरूप में उपस्थिति से राजशेखर के कर्पूरमंजरीसट्टक की याद हो आती है, जिसमें भैरवानन्द कर्पूरमंजरी को स्नानार्द्र वस्त्र में उपस्थित करता है। पर रामचन्द्र का यह चित्रण रंगमंच की मर्यादा का उल्लंघन करता है। इसी तरह पंचम अङ्क में हरिश्चन्द्र द्वारा मांसखण्ड देना नागानन्दनाटक की याद दिलाता है, जिसमें शंखचूड को बचाने के लिए जीमूतवाहन गरुड के लिए अपनी बलि देता है। ___ कवि ने अपने 'नाट्यदर्पण' के सिद्धांत 'नाटक जीवन के सुख
और दुःख दोनों का प्रतिबिम्ब होता है' को दिखाने का पूरा प्रयत्न किया है । कवि ने समस्त नाटक में इतने अधिक पद्यों को योजना की है कि नाट्यव्यापार के स्वाभाविक प्रवाह में बाधा पहुँचती है। संभवतः इस विषय में उनकी यह आदि कृति थी इसलिए ऐसा हुआ हो। यह नाटक सुभाषितों और मुहावरों से भरपूर है। इसका सन् १९१३ में इटालियन भाषा में अनुवाद हो चुका है।
१. जिनरत्नकोश, पृ० ४१२, ४६०; निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, अत्रे और
पुराणिक द्वारा सम्पादित; सत्यविजय जैन ग्रंथमाला में मुनि मानविजय द्वारा सम्पादित एवं सस्य श्री हरिश्चन्द्र नृपति प्रबन्ध के अन्तर्गत बिना अङ्क-विभाग के प्रकाशित, अहमदाबाद, १९२४, नाव्यदर्पण : ए क्रिटिकल स्टडी, पृ० २२४ में संक्षिप्त परिचय.
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