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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
आदि । अभयदेवसूरिकृत जयतिहुअणस्तोत्र' अपभ्रंश भाषा में है और इसमें स्तंभनक पार्श्वनाथ की स्तुति है । यह भी प्रभावक स्तोत्रों में से एक है । दिगम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित प्राकृत का निर्वाण काण्डस्तोत्र' भी प्रिय स्तोत्रों में से एक है ।
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संस्कृत भाषा में तो जैन स्तोत्र बहुमुखी धारा में प्रवाहित हुए हैं। अनेक स्तोत्र विविध छन्दों और अलंकारों में रचे गये हैं । कई श्लेषमय भाषा में तो कई पादपूर्ति के रूप में और कितने ही दार्शनिक एवं तार्किक शैली में भी लिखे गये हैं ।
तार्किक शैली में लिखे गये आचार्य समन्तभद्रकृत स्वयम्भूस्तोत्र' देवागमस्तोत्र, युक्त्यनुशासन और जिनशतकालंकार', आचार्य सिद्धसेन की कुछ द्वात्रिंशिकाएं " तथा आचार्य हेमचन्द्रकृत अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका और अन्य योगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन पर कई टीकाएं भी लिखी गई हैं जो कि जैनन्याय के ग्रन्थों का काम देतो हैं ।
आलंकारिक शैली में लिखे गये स्तोत्रों में महाकवि श्रीपाल ( प्रज्ञाचक्षु ) की सर्वबिनपतिस्तुति ( २९ पर्यो में ), हेमचन्द्र के प्रधान शिष्य रामचन्द्रसूरिकृत अनेक द्वात्रिंशिकाएं और स्तोत्र," जयतिलकसूरिकृत चतुर्हारावलीचित्रस्तव "
१. जिनरत्नकोश, पृ० १३३, यहाँ इसकी ६ टीकाओं का उल्लेख है ।
२. वही, पृ० २१४.
३६. वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली, १९५०-१९५१.
०. जिनरत्नकोश, पृ० १८३, ३४३, ३६९; जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर
से प्रकाशित.
८. वही, पृ० १५.
९. वही, पृ० ११.
१०. इन स्तोत्रों के परिचय के लिए देखें - नाव्यदर्पण : ए क्रिटिकल स्टडी,
पृ० २३५-२३७.
१०. स्तोत्ररत्नाकर, द्वि० भाग, वि० सं० १९७०; अनेकान्त, प्रथम वर्ष, किरण
८-१०, पृ० ५२०.५१८.
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