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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ने इन गाथाओं को पीछे से जोड़ दिया है । इस ग्रन्थ की विषयवस्तु के अन्तरंगपरीक्षण से यह बात स्पष्ट-सी लगती है कि इस काव्य के कलेवर में बाद-बाद की शताब्दियों में वृद्धि होती रही है।
ग्रन्थकर्ता के विषय में नाम के अतिरिक्त किन्हीं स्रोतों से कुछ भी नहीं मालूम होता है।
संस्कृत में इस प्रकार के ग्रन्थों में आचार्य सोमदेवसूरि का 'नीतिवाक्यामृत' उल्लेखनीय है । इसका परिचय इस इतिहास के पांचवें भाग में राजनीति के अन्य के रूप में दिया गया है। सूत्रबद्ध शैली में रचे गये इसके ३२ समुद्देशों में से धर्म, अर्थ और काम समुद्देशों में तथा दिवसानुष्ठान, सदाचार, व्यवहार, विवाह और प्रकीर्ण समुद्देशों में कितने ही सूत्र दैनिक व्यवहार में लाने लायक सुभाषित जैसे हैं जिनमें जैनधर्मसम्मत उपदेश अंकित किये गये हैं। इन सूत्रों की प्रधानता के कारण ग्रन्थ का नाम नीतिवाक्यामृत रखा गया है। ग्रन्थकार सोमदेव का परिचय अन्यत्र यशस्तिलकचम्पू काव्य के प्रसंग में दिया गया है।
सुभाषितों का एक प्रमुख ग्रन्थ आचार्य अमितगतिकृत 'सुभाषितरत्नसन्दोह' है। इसमें सांसारिक विषयनिराकरण, ममत्व-अहंकारत्याग, इन्द्रियनिग्रहोपदेश, स्त्रीगुणदोष-विचार, सदसत्स्वरूपनिरूपण, ज्ञाननिरूपण आदि ३२ प्रकरण हैं और प्रत्येक में बीस-बीस पच्चीस-पच्चीस पद्य हैं। कर्ता का परिचय उनके अन्य ग्रन्थ धर्मपरीक्षा के प्रसंग में दिया गया है। इस ग्रन्थ को रचना वि० सं० १०५० पौष सुदी पंचमी को समाप्त हुई थी जबकि राजा मुंज पृथ्वी का पालन कर रहे थे । ग्रन्थ में ९२२ पद्य हैं।
सोमप्रभाचार्यकृत 'शृंगारवैराग्यतरंगिणी ३ में विविध छन्दों के ४६ पद्यों में नैतिक उपदेशों का संकलन है। इसमें कामशास्त्रानुसार स्त्रियों के हाव-भाव व लीलाओं का वर्णन कर उनसे सतर्क रहने का उपदेश दिया गया है। इस पर आगरा के पं० नन्दलाल ने संस्कृत टीका लिखी है।
१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० २३९-४०. २. जिनरत्नकोश, पृ० १४५-४४६, काव्यमाला, ८२, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई,
१९०९; जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, पृ. २२१-२२; नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृ. २७९, नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत
काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ० १९४-९६ . ३. निर्णयसागर प्रेस, बम्ब ई,१९४२.
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