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ललित वाङ्मय
इनकी एक कृति लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के प्रसंग में पर्याप्त कह आये हैं । इस ग्रंथ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसकी रचना वि० सं० १७६० में हुई थी ।
गद्यकाव्य :
संपूर्ण संस्कृत काव्य- साहित्य में संस्कृत में गद्यकाव्य लिखना कवियों की rai वदन्ति' ।
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गद्यकाव्यों की संख्या गिनी-चुनी है कसौटी माना गया है— 'गद्यं कवीनां
ईस्वी ६ठी शती से ८वीं शती तक गद्यकाव्य के कुछ नमूने सुबन्धु की 'वासवदत्ता', बाण की 'कादम्बरी' और 'हर्षचरित' तथा दण्डी के 'दशकुमारचरित' के रूप में मिले हैं। फिर दो शताब्दी बाद धनपाल की 'तिलकमंजरी' और वादीभसिंह की 'गद्यचिन्तामणि' के रूप में दो जैन गद्यकाव्यों के दर्शन होते हैं। इन दोनों का संक्षित परिचय प्रस्तुत है :
तिलकमंजरी :
यह एक गद्य-आख्यायिका है । इस काव्य का नाम नायिका के नाम से रखा गया है और यह पूर्व कवियों की कृतियों, यथा बाण की कादम्बरी और उद्योतनसूरि की कुवलयमाला आदि के अनुकरण पर ही रचित है ।
कथावस्तु — कोशल देश के इक्ष्वाकु नृप मेघवाहन और रानी मदिरावती को निःसन्तान होने से दुःख था । पुत्र-प्राप्ति के लिए वन में जाकर देवोपासना करने का विचार हुआ पर एक वैमानिक देव के अनुरोध पर घर पर ही श्रीदेवी की उपासना की गई । प्रसन्न देवी ने राजा को पुत्र प्राप्ति का वरदान और बालारुण नामक अंगूठी प्रदान की । पुत्र का नाम हरिवाहन रखा गया । वह धीरे-धीरे वृद्धिंगत होकर सभी विद्याओं का पारगामी हो गया। एक समय एक
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१. वियद्रसमुनीन्दूनां (१७६० वि० सं०) प्रमाणात् परिवत्सरे । कृतो यमुद्यमः....। सप्तसन्धान प्रान्तप्रशस्ति.
२. काव्यमाला सिरीज, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १९३८, शान्तिसूरिरचित टिप्पणी तथा विजयलावण्यसूरिरचित टीका ( पराग ) के साथ, विजयलावण्यसूरीश्वर ज्ञानमन्दिर, बोटाद, वि० सं० २००८; गुरु गोपालदास बरैया स्मृतिग्रन्थ, पृ० ४८४-९१ में डा० हरीन्द्रभूषण जैन का लेख "महाकवि धनपाल और उनकी तिलकमंजरी'.
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