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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
पाँचवें सर्ग में तीर्थकर दीक्षा ग्रहण कर विभिन्न देशों में विहार करते हैं, वे कठोर तपश्चरण करते हैं तथा बाईस परीषर और अनेक प्रकार के उपसर्ग सहन करते हैं । तदनन्तर राम, लक्ष्मण और सीता का वनवास वर्णन, लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा को दण्डित किया जाना, रावण द्वारा सीता का अपहरण, हनुमान द्वारा सीता की खोज और रावण की सभा को आतंकित करना वर्णित है । श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में कहा गया है कि शिशुपाल- जरासन्ध से लड़ने के लिए उन्होंने पाण्डवों से दृढ़ मित्रता की और द्वारका को सुदृढ़ बनाया ।
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छठे सर्ग में तीर्थंकरों द्वारा कर्मों की निर्जरा कर केवलज्ञान प्राप्त करना तथा देवों द्वारा केवलज्ञान-कल्याण की पूजा करने के वर्णन के बाद राम द्वारा रावण पर सुग्रीव आदि की सहायता से विजय प्राप्त करना और श्रीकृष्ण द्वारा अपने शत्रुओं का उन्मूलन कर अर्धचक्रवर्ती पद प्राप्त करना वर्णित है। सातवें सर्ग में तीर्थकरों के समवसरण की रचना, भरत आदि राजाओं की उपस्थिति, तीर्थकरों द्वारा विहार और उससे प्राणियों के कल्याण के वर्णन के बाद - तुओं का वर्णन और तीर्थकरों के उपदेश से अनेक व्यक्तियों द्वारा दीक्षाग्रहण करना आदि वर्णित है। अष्टम सर्ग में भरत चक्रवर्ती की दिग्विजययात्रा एवं शिलातीर्थ पर जिनप्रतिमाओं का बन्दन तथा भगवान् ऋषभदेव के मोक्षगमन के बाद भरत द्वारा उनकी परिपालित भूमि की रक्षा करने का तथा राम-कृष्ण के पक्ष में अनेक नृपों पर विजय का वर्णन दिया गया है । ७-८वें सर्गों की विशेषता 1 यह है कि इनमें विविध छन्दों के प्रयोग हैं। यमकालंकार के सभी भेदों और अन्तिम भेद महायमक के भी उदाहरण दिये गये हैं ।
नवम सर्ग में ऋषभ की संसार में व्याप्त कीर्ति के वर्णन पूर्वक अन्य तीर्थकरों की निर्वाणप्राप्ति का वर्णन दिया गया है । इसके बाद राम द्वारा अयोध्या के राज्य की प्राप्ति, सीता से दो पुत्रों की प्राप्ति, सीता की अग्निपरीक्षा एवं उसके द्वारा संसार से विरक्त हो दीक्षा धारण करना तथा कालान्तर में राम की विरक्ति, तपस्या एवं निर्वाणप्राप्ति का वर्णन दिया गया है। इसी तरह श्रीकृष्ण द्वारा द्वारका की रक्षा, यादवों के उपद्रव से द्वैपायन मुनि द्वारा द्वारका का सर्वनाश तथा बलराम द्वारा विरक्त हो तपस्या करके निर्वाण प्राप्ति के वर्णन के साथ काव्य की समाप्ति होती है। इस काव्य में कुल मिलाकर ४४२ पद्य हैं ।
रचयिता एवं रचनाकाल - इसके रचयिता तपागच्छ के प्रसिद्ध उपाध्याय मेघविजय हैं। इनके परिचय और इनकी कृतियों के विषय में हम अन्यत्र
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