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-ललित वाङ्मय
यह गीतवीतरागप्रबंध जिस गंगवंशी देवराज के लिए लिखा गया था उसके विषय में श्रवणबेलगोल के शिलालेखों (संख्या ३३७४९) में सूचना मिलती है । इन शिलालेखों में उक्त कवि को श्रीमद् अभिनव चारुकीर्ति पण्डिताचार्य, श्रीमद् पण्डिताचार्य या श्रीमतु पण्डितदेवरु कहा गया है और उन्हें मूलसंघ, देशीयगण, पुस्तकगच्छ, कुन्दकुन्दान्वय का बतलाया गया है । शिलालेख संख्या ३३७ में उनकी शिष्या भीमादेवी का उल्लेख है जो देवराय महाराय की रानी थी । श्री आर० नरसिंहाचार के मतानुसार यह देवराय विजयनगरनृप देवराय प्रथम (सन् १४०६-१६) होना चाहिए और उक्त लेख का समय लगभग १४१० ई० होना चाहिए । गीतवीतरागप्रबंध में देवराज को राजपुत्र कहा गया है। और यदि इसे ठीक अर्थ में लें तो उक्त ग्रंथ की रचना १४०० ई० के लगभग होनी चाहिए । तब देवराय राजपुत्र था ।
योगिराज पण्डिताचार्यकृत पार्श्वभ्युदय की टीका भी मिलती है जो सन् १४३२ ई० के लगभग रची गई होगी क्योंकि सन् १४३२ के लेख में ही उन्हें योगिराज शब्द से उल्लिखित किया गया है ।
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पाठ्य मुक्तक काव्यों में सुभाषितों का भी प्रमुख स्थान है ।
सुभाषित :
सुभाषित और सूक्ति के रूप में जैन मनीषियों की प्राकृत और संस्कृत में अनेक रचनाएं मिलती हैं । सुभाषित काव्यों को प्रधान रूप से धर्मोपदेश या धार्मिक सूक्तिकाव्य, नैतिक सूक्तिकाव्य और काम या प्रेमपरक शृंगार-सूक्तिकाव्यों के रूप में देख सकते हैं । जैन विद्वानों ने सदाचार और लोकव्यवहार का उपदेश देने के लिए स्वतंत्र रूप से अनेक सुभाषित पदों का निर्माण किया है जिनमें प्रायः जैनधर्मसम्मत सदाचारों एवं विचारों से रंजित उपदेश प्रस्तुत किये गये हैं। वैसे तो जैन पुराणों और अन्य साहित्यिक रचनाओं में सुभाषित पद भरे पड़े हैं पर केवल उनका ही अध्ययन करने वालों को तथा विविध प्रसंगों पर दूसरों को सुनाने आदि के लिए उनकी स्वतंत्र रूप से रचना भी की गई है ।
प्राकृत में धार्मिक सूक्तिकाव्य के रूप में धर्मदासगणिकृत उपदेशमाला, हरिभद्रसूरिकृत उपदेशपद, हेमचन्द्राचार्य का योगशास्त्रप्रकाश, मलधारी हेमचन्द्रकृत उपदेशमाला और आसदमुनिकृत विवेकमंजरी, लक्ष्मीलाभगणिकृत वैराग्यरसायनप्रकरण, पद्मनन्दिकृत धम्मरसायणप्रकरण आदि विशेष
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