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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सर्गों के अनुसार इस काव्य का संक्षिप्त कथानक इस प्रकार है : प्रारम्भ में आठ पद्यों द्वारा मंगलाचरण, ६ पद्यों द्वारा सजन-दुर्जनस्वभाव-विवेचन के बाद कथा का आरम्भ होता है। तत्पश्चात् मगधदेश की जयन्ती नगरी के राजा विक्रमसिंह, उनकी पत्नी प्रीतिमती और मन्त्री सुबुद्धि का परिचय दिया गया है (१ सगं)। इसके बाद हथिनी और शिशुगज को देखकर रानी को सन्तानअभाव से उदासीनता, राजा की प्राणों की बाजी लगाकर इच्छापूर्ति करने की प्रतिज्ञा का वर्णन है (२ सर्ग)। मन्त्री सुबुद्धि प्रतिज्ञापूर्ति का साधन पंचपरमेष्ठि मन्त्र को बताता है, उदाहरण के लिए धनावह सेठ की कथा दी गई है जिसने उक्त मन्त्र के प्रभाव से अनेक विपत्तियाँ पार की थीं ( ३ सर्ग)। तत्पश्चात् राजा द्वारा रात्रि में नगरवीक्षा करना, नारीचोत्कार का अनुगमन करते नमस्कार मन्त्र के बल से एक देवता को परास्त करना और उससे मुक्ताहार प्राप्त करना और आगे बढ़कर एक कन्या की बलि के लिए उद्यत एक योगी को परास्त कर कन्या प्राप्त करना वर्णित है ( ४ सर्ग)। कन्या के परिचय से यह मालूम करना कि वह उसकी रानी की बहिन है। फिर देवता द्वारा योगी का तथा राजा (विक्रमसिंह ) के पूर्वजन्म का परिचय देना वर्णित है ( ५ सर्ग)। तत्पश्चात् राजा द्वारा कन्या को उसके पिता के पास लेकर जाना, कन्या के पिता विक्रमसिंह (राजा) के साथ उसका विवाह करना, नवविवाहिता पत्नी के साथ राजा का अपनी राजधानी जयन्ती नगरी को लौटना और देवता द्वारा प्रदत्त मौक्तिक आहार को रानी प्रीतिमती को देना, रानी का गर्भधारण करना और समय पर उसे जयन्त नामक पुत्र होना वर्णित है (६ सग)। तत्पश्चात् जयन्त के युवा होने पर युवराज बनने तथा वसन्त ऋतु आने पर वनश्री देखने उपवन जाने का वर्णन है (७ सर्ग)। इसके बाद दोलान्दोलन, पुष्पावचय, जलकेलि, सूर्यास्त एवं चन्द्रोदय का वर्णन है तथा युवराज के संध्यासमय राजधानी में लौटने की सूचना दी गई है (८ सग)।
एक समय सिंहलनरेश के हाथी के जयन्ती नगरी में भाग आने, उस हाथी को राजा द्वारा पकड़वाने, सिंहलनरेश के माँगने पर वापिस करने से अस्वीकार करने तथा सिंहलनृप द्वारा आक्रमण करने और उसका प्रतिरोध करने जयन्त का ससैन्य जाने का वर्णन है ( ९ सर्ग)। तत्पश्चात् सिंहलनृप की मृत्यु तथा जयन्त की विजय-यात्रा का वर्णन है (१० सर्ग)। इसके बाद जयन्त की दिग्विजय का वर्णन है (११ सर्ग)।
तत्पश्चात् एक देवता द्वारा गगनविलासपुर के नरेश की पुत्री कनकवती के विवाहार्थ जयन्त का अपहरण करना और उसका एक जिनमन्दिर में पहुंचकर
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