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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
तरलं
यदालोकनतः सद्यः सरलं रसिकस्य मनोभूयात्कविता वनितेव
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सदुक्तिमपि गृह्णाति प्राज्ञो नाज्ञो जनः पुनः । किमकूपारवत्कूपं वर्धयेद्विधुदीधितिः ॥
तराम् ।
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कर्ता एवं रचनाकाल — यह आधुनिक काल की रचना है । इस काव्य के अन्त में दी गई प्रशस्ति' से ज्ञात होता है कि इस काव्य के रचयिता बालब्रह्मचारी वाणीभूषण पं० भूरामल शास्त्री हैं। ये जयपुर के पास राणाली ग्राम के निवासी दिग० जैन खण्डेलवाल जाति के छावड़ा गोत्र के थे । प्रशस्ति में इन्होंने अपने पिता का नाम श्रेष्ठि चतुर्भुज और माता का नाम घृतवरी देवी सूचित किया है । इसे कवि ने नव्यपद्धति से बनाया काव्य 1 रचना सं० १९९४ के लगभग हुई है ।
कहा है । इस काव्य की
कुछ जैन कवियों ने जैन कथानकों के अतिरिक्त अन्य कथानकों पर भी महाकाव्य लिखे हैं । उनमें अमरचन्द्रसूरि का बालभारत महत्त्व का है ।
बालभारत :
यह 'महाभारत' की सम्पूर्ण कथा का सार है । मूल महाभारत की तरह ही यह भी १८ पर्वों में विभाजित है और ये पर्व भी एक या एक से अधिक सर्गों में विभाजित हैं । इन सर्गों की संख्या ४४ है । इसमें कुल मिलाकर ५४८२ पद्य हैं जो कि विविध २३ छन्दों में हैं । इसका ग्रन्थाग्र ६९५० श्लोकप्रमाण है ।
इस काव्य की कथासामग्री महाभारत से ली गई है। मूल महाभारत को संक्षिप्त करने में लेखक ने केवल उसके कथाभाग पर ही ध्यान दिया है और नीति तथा धर्मशास्त्र की बातें प्रायः छोड़ दी हैं। इससे शान्ति और अनुशासन पर्व जैसे तथा बड़े पर्व एक-एक सर्ग में ही समाप्त कर दिये गये हैं । जहाँ महाभारत में विविध घटनाओं में महाकाव्योचित धारावाहिकता का अवरोध है वहाँ बालभारत के
१. पुरुषपदार्थधरालोकमिते विक्रमोतसंवत्सरे हिते ।
श्रावणमासिमितिं प्रतियाति पूर्णां जिनपरहितैक जाति ॥ २८. ११०. २. नव्यां पद्धतिमुद्धरत्सुकृतिभिः काव्यं मतं तत्कृतम् । ३. ११७. ३. काव्यमाला ( संख्या ४५ ), निर्णयसागर प्रेस, बम्बई,
१८९४.
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