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ललित वाय
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अमरचन्द्रसूरि ने बालभारत की रचना कब की, इसकी सूचना कहीं नहीं मिलती। 'चतुर्विंशतिप्रबंध' से ज्ञात होता है कि कवि वीसलदेव बघेला के समकालीन थे। इस नृप का राज्यकाल सं० १२९४ से सं० १३२८ माना जाता है । अतः बालभारत की रचना इसी समय के मध्य होनी चाहिए । पाटन के अष्टापद जिनालय में अमरचन्द्रसूरि की प्रतिमा है जिसे सं० १३४९ में स्थापित किया गया था। इससे पूर्व कवि का स्वर्गवास हो चुका होगा। अन्य अनुमानों से सिद्ध होता है कि 'बालभारत' का रचनाकाल सं० १९७७ से सं० १२९४ तक कभी होना चाहिए ।
लघुकाव्य:
जैन कवियों ने महाकाव्यों की संख्या से कहीं बहुत अधिक लघुकाव्यों की रचना की है। इन काव्यों में यद्यपि कथा जीवनव्यापी होती है पर सर्गो' की संख्या कम रहती है। पौराणिक महाकाव्यों के अन्तर्गत एक वस्तुकथा को प्रतिपादित करने वाले ऐसे अनेक लघुकाव्यों का वर्णन हमने किया है, यथा वादीभसिंह का क्षत्रचूड़ामणिकाव्य, वादिराज का यशोधर चरित, जयतिलकसूरि का मलयसुन्दरीचरित, सोमकीर्ति का प्रद्युम्नचरित आदि । १५वीं१७वीं शती तक भट्टारकों-सकलकीर्ति, ब्रह्म जिनदास, शुभचन्द्र आदि-ने इस प्रकार के अनेकों चरितात्मक लघुकाव्य लिखे थे। इन काव्यों में शास्त्रीय महाकाव्यों के समान कथात्मक नाना भंगिमाएँ नहीं मिलती और न बृहत् पौराणिक महाकाव्यों के समान नाना अवांतर कथाओं का जाल । इनमें प्रधान वस्तुकथा संक्षेप में परिमित सर्गों-६-८ या १०-१२–में दी गयी है तथा वस्तुवर्णन व्यापक रूप में उपस्थित नहीं किये गये हैं। ___ हम यहाँ ऐसी कुछ रचनाओं का परिचय प्रस्तुत करते हैं। श्रीधरचरितमहाकाव्य :
यह काव्य' सर्गों में विभक्त है। इसमें सब मिलाकर १३१३ पद्य हैं जिनका ग्रन्थान १६८६ है। कवि ने अपनी छंदशता का विशेष परिचय दिया
१. तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य, पृ० २५५-२५०. २. जिनरत्नकोश, पृ० ३९६, चारित्रस्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४८, वी० सं०
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