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ललित वाजाय
अमरदत्तनृपकथा, वणिकद्वयकथा, परिव्राटकथा, अमृताम्रभूपतिकथा, स्कन्दिलपुत्रकथा, गुणवर्मकथा, अग्निशर्माद्विजकथा, भानुदत्तकथा, माघवकथा आदि । इनमें से कुछ अवान्तर कथाएँ बहुत लम्बी हैं। धनदत्तकथा ५-६-७ सर्गों को घेरे है । इन अवान्तर कथाओं के चयन में भी प्रस्तुत काव्य के रचयिता मुनिभद्र ने मुनिदेव का अनुकरण किया है । मुनिदेवसूरि के शान्तिनाथचरित्र में जो अवान्तर कथाएँ उपलब्ध हैं ठीक वे ही उसी क्रम से प्रस्तुत काव्य में विद्यमान हैं । इसी तरह प्रस्तुत काव्य में जैन धर्म के उन्हीं तत्त्वों का विवेचन हुआ है जिनका विवेचन मुनिदेवसूरि ने किया है। इस तरह इस काव्य में कथावस्तु पूर्णतया मुनिदेव के 'शान्तिनाथचरित्र' के पदचिह्नों पर चली है। इसमें मुनिभद्र ने मौलिक सृजनशक्ति का परिचय नहीं दिया फिर भी यह काव्य अपनी प्रौढ़ भाषाशैली और उदात्त अभिव्यंजनाशक्ति से अपना पृथक् स्थान रखता है । इस दृष्टि से मौलिक और नवीन लगता है ।
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यह काव्य उन्नीस सर्गों में विभक्त है । अनुष्टुभ् मान से इसका रचनापरिमाण ६२७२ श्लोक- प्रमाण है ।
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भवान्तरों और अवान्तर कथानकों के प्राचुर्य के साथ इस काव्य में स्तोत्रों और माहात्म्यों का समावेश भी अधिक मात्रा में हुआ है तथा प्रत्येक सर्ग के प्रारम्भ में कवि द्वारा शान्तिनाथ का स्तवन तथा बीच-बीच में देवताओं और कथानक के पात्रों द्वारा जिनेन्द्र की स्तुतियाँ और मेघरथ आदि सत्पुरुषों की देवताओं द्वारा स्तुतियाँ की गई हैं। शत्रुञ्जयमाहात्म्य आदि एक-दो माहात्म्य भी इस काव्य में हैं ।
इस काव्य में अनेक पुरुष एवं स्त्री पात्र हैं किन्तु चरित्रचित्रण की दृष्टि से इनमें शान्तिनाथ, चक्रायुध, अशनिघोष एवं सुतारा ही प्रमुख पात्र हैं, इन्हीं के चरित्र का विकास हुआ है, शेष पात्रों का नहीं । इस काव्य में प्रकृति-चित्रण कम किया गया है। कहीं-कहीं संक्षेप में प्रातः, संध्या, सर, उपवन एवं विभिन्न ऋतुओं का वर्णन किया गया है। सौन्दर्य-चित्रण भी कवि ने किया है परन्तु उसे परम्परागत उपमानों द्वारा ही, किन्तु इन प्रयोगों में भी कवि की कल्पनाएँ बहुत कुछ मौलिक एवं सुन्दर हैं ।
इस काव्य में समसामयिक सामाजिक अवस्था का सुन्दर वर्णन हुआ है। अपने युग में जन्म, विवाह आदि अवसरों पर होनेवाले सामाजिक-धार्मिक
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