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ललित वाङ्मय
प्रद्युम्नचरित पर लिखी रचनाओं की तालिका के अनुसार यह कहा जा सकता है कि इसे सर्वप्रथम स्वतन्त्र चरित एवं काव्य के रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय महासेनाचार्य को है ।
कालक्रम से संस्कृत में प्रद्युम्नचरित पर दूसरी रचना सकलकीर्ति भट्टारक( १५वीं शती) रचित का उल्लेख मिलता है । '
नेमिनिर्वाणमहाकाव्य :
इस काव्य में बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ का जीवनवृत्त वर्णित है । इसमें पन्द्रह सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग की समाप्ति पर दिये गये वाक्य में इसे 'महाकाव्य कहा गया है। इसमें क्रमशः प्रथम से पन्द्रहवें सर्ग तक ८३ + ६० + ४७ + ६२ + ७२+५१+ ५५ + ८० + ५७+४६ +५८ + ७० + ८४ + ४८ + ८५ = कुल ९५८ पद्य हैं । नागौर के शास्त्र भण्डार में इस काव्य की चार हस्तलिखित प्रतियाँ हैं । इन हस्तलिखित प्रतियों में १३वें सर्ग में ८५ पद्य और अन्तिम सर्ग में ८८ पद्य दिये गये हैं। इससे महाकाव्य में कुल मिलाकर ९६२ पद्म हो जाते हैं । तेरहवें सर्ग में नेमिनाथ के भवान्तरों का वर्णन है और शेष वर्गों में वर्तमान भव और उससे सम्बन्धित अन्य बातों का ।
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ग्रन्थ की भाषा सरल होते हुए भी अत्यन्त सरस है । विविध छन्दों का प्रयोग करने में प्रस्तुत महाकाव्य का रचयिता अति कुशल है । सातवें सर्ग में आर्या, शशिवदना, बन्धूक, विद्युन्माला, शिखरिणी, प्रमाणिका, माद्यभृङ्ग, हंसरुत, रुक्मवती, मत्ता, मालिनी, मणिरङ्ग, रथोद्धता, हरिणी, इन्द्रवज्रा, पृथ्वी, भुजङ्गप्रयात, स्रग्धरा, रुचिरा, मन्दाक्रान्ता, वंशस्थ, प्रमिताक्षरा, कुसुमविचित्रा, प्रियंवदा, शालिनी, मौक्तिकदाम, तामरस, तोटक, चन्द्रिका, मञ्जुभाषिणीं, मत्तमयूर, नन्दिनी, अशोकमालिनी, स्रग्विणी, शरमाला, अच्युत, शशिकलिका, सोमराजी, चण्डवृष्टि, द्रुतविलम्बित, प्रहरणकलिका, भ्रमरविलसिता और वसन्ततिलका हैं । इन छन्दों में अनेक ऐसे छन्द हैं जिनका पता 'वृत्तरत्नाकर' के प्रणेता केदारभट्ट को भी नहीं था । इनमें कुछ छन्द ऐसे भी हैं जिनका प्रयोग कालिदास, भारवि, माघ तथा पश्चात्वर्ती वीरनन्दि और हरिचन्द्र आदि प्रसिद्ध महाकवियों
१. जिनरत्नकोश, पृ० २६४.
२. काव्यमाला, ५६, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १९३६.
३. संख्या २१, ९९, १०७
और
२५४.
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