Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 506
________________ ४९३: ललित वाङ्मय वर्णन है । ९ - ११ वें सर्ग में सनत्कुमार का अपहरण, उसके मित्र महेन्द्र द्वारा खोज तथा प्राप्ति का वर्णन है । १२ - २२ सर्ग में सनत्कुमार के संकेत पर उसकी पत्नी बकुलमती सनत्कुमार के अश्व द्वारा अपहरण से लेकर सनत्कुमार द्वारा यक्ष विजय, भानुवेग की अष्ट कन्याओं से विवाह आदि, अशनिघोष से युद्ध और बकुलमती आदि कन्याओं से विवाह का वर्णन करती है। इसी प्रसंग में चौदहवें और सोलहवें सर्ग में क्रमशः चन्द्रोदय और शरद् ऋतु का वर्णन है । बाईसवें सर्ग के अन्त में सूचना मिलती है कि सनत्कुमार अपने माता-पिता से मिलने चल देता है । तेईसवें सर्ग में सनत्कुमार का नगर प्रवेश, कुछ समय बाद एक देव का सनत्कुमार के सौन्दर्य को देखने आना और उसकी कान्ति को अचानक क्षीण होते देख ६ मास में मृत्यु की सम्भावना कहकर जाना, इसे सुनकर सनत्कुमार का विरक्त होना वर्णित है । चौबीस पर्व में सनत्कुमार का व्रत उपवास करना, उसके शरीर में सातभयंकर व्याधियों का उदित होना, देव द्वारा परीक्षा, अन्त में पंचपरमेष्ठि मंत्र का स्मरण कर सनत्कुमार का मोक्ष जाना वर्णित है । यहीं काव्य समाप्त होता है । इस काव्य का कथानक अच्छा संगठित और व्यवस्थित है । सभी घटनाएँ एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं जिससे कथानक में अविच्छिन्नता और धारावाहिकता विद्यमान है । इसमें अन्य पौराणिक महाकाव्यों में मिलनेवाले दोषों अर्थात्. अवान्तर कथाओं की योजना या लम्बे वर्णन का अभाव है । सनत्कुमारचरित्र में अनेक पात्र हैं पर इनमें सनत्कुमार का चरित्र अच्छी तरह विकसित हुआ है । अन्य पात्रों में अश्वसेन ( पिता ), महेन्द्र ( मित्र ),. कुलमती (पत्नी) आदि हैं । प्रकृतिचित्रण भी इस काव्य में विविध रूपों में हुआ है। चौदहवें और सोलहवें सर्ग इस दिशा में अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। अन्य सर्गों में भी प्रकृति के व्यापक' रूप मिलते हैं । सौन्दर्य-वर्णन में कवि ने नखशिख का वर्णन किया है, उसमें भी निसर्गसौन्दर्य का न कि प्रसाधन-सामग्री से अलंकृत सौन्दर्य का । सामाजिक चित्रण में कवि ने वैवाहिक रीतिरिवाजों के अतिरिक्त अन्य सामाजिक परम्पराओं का वर्णन प्रायः नहीं किया । १. सर्ग १०. ६१, ५९, ६४, ६५; ११.५, १४; १२.४१, ६९; १५.१४ १६. ६३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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