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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास थोड़ा-बहुत परिचय दिया है। मन्त्री पृथ्वीपाल, सुप्रसिद्ध दण्डनायक मन्त्री विमलसाह पोरवाड का वंशज था। मूल में ये लोग श्रीमाल के निवासी थे, पीछे पाटन के पास गांभू नाम के स्थान में आकर बस गये थे और जब अणहिलपुर की स्थापना हुई उसी समय वे लोग वहाँ आकर बस गये । चावड़ावंश के नरेश वनराज के समय में इस वंश का प्रसिद्ध पुरुष निन्नय था । वह हाथी-घोड़े और धन-समृद्धि से युक्त था। वनराज उसे अपने पिता के समान मानता था और वनराज ने ही आग्रहपूर्वक उसे वहाँ बसाया था। निन्नय के लहर नामक एक बड़ा पराक्रमी पुत्र था जो विंध्याचल से अनेक हाथियों को पकड़कर लाता था। गुजरात के नवोदित साम्राज्य को बलवान् बनाने में उसका बड़ा भाग था। वनराज से लेकर दुर्लभराज चौलुक्य तक ११ राजाओं के किसी न किसी प्रधान पद पर इस वंश के पुरुष क्रम से चले आ रहे थे। दुर्लभराज के समय में वीर नामक प्रधान था। उसके दो पुत्र ज्येष्ठ नेढ और लघु विमल थे। ज्येष्ठ तो भीमदेव चौलुक्य का महामात्य और लघु दण्डनायक था। भीम के आदेश से आबू के परमार राजा को जीतने के लिए विमल बड़ी सेना लेकर चन्द्रावती गया और उसे जीतकर गुजरात का एक सामन्त बनाया। पीछे उसी ने अम्बादेवी की कृपा से आबू पर्वत पर सुप्रसिद्ध आदिनाथ के भव्य मन्दिर को बनवाया। नेढ का पुत्र धवल हुआ जो कर्णदेव चौलुक्य का एक अमात्य था। उसका पुत्र आनन्द हुआ जो सिद्धराज और कुमारपाल के समय में भी किसी एक प्रधान पद पर था। उसका पुत्र महामात्य पृथ्वीपाल हुआ। इसने आबू के ऊपर विमलसाह के मन्दिर में अपने पूर्वजों की हाथी के कन्धे पर बैठी ७ मूर्तियाँ बनवाई थीं तथा पाटन के पंचासर पार्श्वनाथ मन्दिर में एक भव्य मण्डप बनवाया था। उसने चन्द्रावती, रोहा, वराही, सावणवाडा आदि ग्रामों में देवस्थानों का जीर्णोद्धार कराया, अनेक पुस्तकें लिखाकर भण्डारों को दी आदि बातें इस प्रशस्ति में आई हैं। यह एक प्रबन्ध जैसा लगता है ।
वनराज चावड़ा के विषय में सबसे पहला उल्लेख यही माना जाता है। विमल मन्त्री के विषय में सबसे पहली खोज यही है। गुजरात के राजवंश और प्रधानवंश की यह अविच्छिन्न परम्परा ऐतिहासिक दृष्टि से बहुमूल्यवान् है । इस तरह यह प्रशस्ति गुजरात के इतिहास के लिए महत्त्व की है। अममस्वामिचरित की प्रशस्ति : ___ अममस्वामिचरित का परिचय पहले दिया है। उसके अन्त में ३४ पद्यों वाली प्रशस्ति में उस काल के गुजरात के अनेक प्रमुख ऐतिहासिक व्यक्तियों का
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