________________
४५२
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आचार्य कालक तथा जिनभद्र एवं हरिभद्र का भी वर्णन किया गया है। इससे गुजरात के अनेक राजाओं के राज्यकाल की सूचना मिलती है।
इसकी रचना प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रबन्धचिन्तामणि के रचयिता मेरुतुंग ने की है। गणधरसार्धशतक :
इसमें १५० गाथाएँ हैं जिनमें खरतरगच्छ के आचार्यों का जीवनवृत्त वर्णित है। इसकी रचना जिनवल्लभरि के शिष्य जिनदत्तसूरि (वि० सं० १२११ से पूर्व) ने की थी। इसमें लिखा है कि वर्धमानसूरि के शिष्य और पट्टधर जिनेश्वरसूरि को खरतर की उपाधि दी गई थी इसलिए गच्छ का नाम खरतर हो गया । ___इस पर जिनपतिसूरि के शिष्य सुमतिगणि ने सं० १२९५ में ६००० ग्रन्थानप्रमाण वृत्ति लिखी है । मूल और वृत्ति दोनों को पट्टावली भी कहा जाता है। इन दोनों पर सर्वराजगणि की टीका और पद्ममन्दिरगणिकृत (सं० १६४६ ) वृत्ति भी मिलती है। खरतरगच्छ-बृहद्गुर्वावलि
यह ४००० श्लोक-प्रमाण ग्रन्थ है। इसमें वि० ११वीं शताब्दी के प्रारम्भ में होनेवाले आचार्य वर्धमानसूरि से लेकर १४वीं शताब्दी के अन्त में होनेवाले जिनपद्मसूरि तक के खरतरगच्छ के मुख्य आचार्यों का विस्तृत चरित वर्णित है। गुर्वावलि अर्थात् गुरुपरम्परा का इतना विस्तृत और विश्वस्त चरित वर्णन करनेवाला ऐसा कोई और ग्रन्थ अभी तक शात नहीं हुआ। इसमें प्रत्येक आचार्य का जीवनचरित्र बड़े विस्तार से दिया गया है। किस आचार्य ने कब दीचा ली, कब आचार्य पदवी प्राप्त की, किस-किस प्रदेश में विहार किया, कहाँ-कहाँ चातुर्मास किये, किस-किस जगह कैसा धर्मप्रचार किया, कितने शिष्य-शिष्याएँ दीक्षित किये, कहाँ पर किस विद्वान् के साथ शास्त्रार्थ या वादविवाद किया, किस राजा की सभा में कैसा सम्मान आदि प्राप्त किया इत्यादि अनेक आवश्यक बातों का
१. जिनरत्नकोश, पृ० १०३ और २३२ (v-vi); हीरालाल हंसराज, जाम
नगर, १९१६; गायकवाड़ मोरियण्टल सिरीज, भाग २७ के परिशिष्ट में
भी प्रकाशित. २. जिनरत्नकोश, पृ० १०१, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्यांक ४२, बम्बई, वि०
सं० २०१३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org