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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास लेख तथा अन्य लेखों में मल्लिषेण प्रशस्ति, सूदी, मदनूर, कुलचुम्बरू और लक्मेश्वर आदि से प्राप्त लेख संस्कृत पद्य और गद्य काव्यों के अच्छे उदाहरण हैं। उत्तर भारत के अधिकांश जैन लेख कुछ अपवाद के साथ विशुद्ध संस्कृत में ही रचे गये हैं।
प्राकृत भाषा में जितने भी अभिलेख मिले हैं उनमें सबसे प्राचीन एक जैन लेख मिला है जो अजमेर से ३२ मील दूर बारली (बड़ली) नामक ग्राम से एक पाषाणस्तंभ पर ४ लघुपंक्तियों में खुदा मिला है। उसे पढ़कर ख० गौरीशंकर ही० ओझा ने बतलाया कि उसमें वी० नि० सं० ८४ लिखा है।' उक्त लेख की लिपि भी अशोक पूर्व की मानी गई है। इसके बाद अशोक के लेखों के पश्चात् हमें उड़ीसा से हाथीगुम्फा का शिलालेख नृप खारवेल और उसके परिवार का मिलता है। इसके बाद मथुरा और पभोसा से प्राप्त जैन लेख प्राकृत में ही हैं। मथुरा के कुछ लेख संस्कृतमिश्र प्राकृत में और कुछ संस्कृत में हैं। इसके बहुत समय बाद गुर्जर प्रतिहार की जोधपुर शाखा का एक लेख घटियाल' (वि० सं० ९१८) से महाराष्ट्री प्राकृत में मिला है। फिर १४-१८वीं
१. चूकि अनेक प्राचीन जैन ग्रन्थों में इस प्रकार के उल्लेख मिलते हैं कि
वीर-निर्वाण के इतने वर्ष बाद भमुक कार्य हुआ और इतने वर्ष बाद अमुक राजा या भाचार्य हुए भादि, अतः उक्त लेख में वी०नि० सं० का उल्लेख
शंका का विषय नहीं होना चाहिए। २. यह लेख सन् १८२७ या उसके पूर्व स्टलिंग महोदय को मिला था। इसके
बाद उसकी पाण्डुलिपि बनाने और उसे पढ़ने में उच्चकोटि के अनेकों विद्वानों ने अथक परिश्रम किया। उनमें जेम्स प्रिन्सेप, जनरल कनिंघम, राजेन्द्रलाल मित्र, भगवानलाल इन्द्रजी, राखालदास बनर्जी, काशीप्रसाद जायस
वाल, वेणीमाधव बरुआ, शशिकान्त जैन प्रभृति उल्लेखनीय हैं। ३. एपिग्राफिया इण्डिका, भाग १-२; इण्डियन एण्टीक्वेरी, भाग ३३, जैन
शिलालेख संग्रह, भाग २, जैन हितैषी, भाग १०, १३; जैन सिद्धान्त भास्कर पत्रिका में अनेक लेख; प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ और वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
में अनेक लेख. .. जर्नल ऑफ रोयल एशियाटिक सोसाइटी, १८९६, पृ. ५१३ प्रभृति;
जैन लेखसंग्रह (नाहर), भाग १, संख्या ९४५.
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