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कथा-साहित्य
सुकोशलचरित-तप की आराधना के महत्त्व को प्रकट करने और तिर्यञ्च (व्याघ्री ) कृत उपसर्ग को क्षमा भाव से सहन करने के लिए सुकौशलमुनि का चरित्र अनेक कथाकोशों में आया है। हरिषेण के कथाकोश में यह चरित्र २८४ श्लोकों में वर्णित है।
प्राकृत ( अपभ्रंश ?) में सोमकीर्ति' भट्टारक कृत तथा तीन अज्ञातकर्तृक रचनाएँ (जिनमें ९७ गा०,१०१ गा० और १०७ गा० हैं) उपलब्ध होती हैं। संस्कृत में ब्रह्म नेमिदत्त' और भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति' कृत रचनाएँ मिलती है। अपभ्रंश में १३०२ में रचित अज्ञातकर्तृक ग्चना' तथा कवि रइधकृत सुकोसलचरिउ का उल्लेख मिलता है।
अवन्ति-सुकुमाल अथवा सुकुमालचरित-तप की चरम आराधना और तिर्यञ्च (शृगाली) के उपसर्ग को अडिग भाव से सहन करने के दृष्टान्तरूप अवन्ति-सुकुमाल की कथा आराधना कथाकोशों तथा अन्य कथाकोशों में वर्णित है। हरिषेण के कथाकोश में यह कथा २६० श्लोकों में दी गई है। दानप्रदीप में इसे उपाश्रयदान के महत्त्व में कहा गया है। अवन्तिसुकुमाल आचार्य सुहस्ति के शिष्य माने गये हैं और कहा जाता है कि इन्हीं के समाधिस्थल पर उज्जैन का महाकालेश्वर मन्दिर बना है।
इस पर स्वतंत्र रचनाओं में भट्टारक सकलकीर्ति' (१५वीं शती) कृत ९ सर्गात्मक १०५० श्लोकों में एक काव्य उपलब्ध है। दूसरी रचना भट्टारक प्रभाचन्द्र के शिष्य वादिचन्द्र (सं० १६४०-१६६०) कृत तथा अन्य अज्ञात कर्तृक संस्कृत रचनाओं का उल्लेख मिलता है।
पाटन (गुजरात) के तपागच्छ भण्डार के एक कथासंग्रह में अवन्तिसुकुमालकथा प्राकृत ११९ गाथाओं में उपलब्ध है।
जिनदत्तचरित-साधुपरिचर्या या मुनि-आहारदान के प्रभाव से व्यक्ति जीवन-प्रसंग में खतरों से बचता हुआ, अपनी कितनी शुद्धि कर सकता है इस
१.६. वही, पृ० ४४३-४४४; हिन्दी में सुकोशलचरित्र प्रकाशित है। गुजराती
में अनेक रास मादि उपलब्ध हैं। ७-९. वही, पृ० ४४३; सुकुमालचरित्र पर हिन्दी में गद्य-पद्य रचनाएँ
प्रकाशित हुई हैं। १०. वही, पृ० १७, पाटन भण्डार सूची, भाग १, पृ० ४०५.
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