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कथा-साहित्य
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कथावस्तु-हस्तिनापुर में गुणवर्मा राजपुत्र ने राज्यपद पाने के बाद क्रमशः रत्नावली, कनकावली, रत्नमाला और कनकमाला राजकुमारियों से विवाह किया। द्वितीय राजकुमारी के विवाह प्रसंग में पार्श्वनाथ जिनमन्दिर में भक्तिभाव से पूजा करते समय उसे जाति-स्मरण हुआ कि पूर्वभव में वह हस्तिनापुर में धनदत्त नामक सेठ था। उसके ४ वधुओं से १७ प्रकार की पूजा से १७ पुत्र हुए थे। जिनपूजा के प्रभाव से वह देव हुआ और इस जन्म में गुणवर्मा नरेश । इस जन्म में भी उसके १७ पुत्र हुए। इसमें १७ प्रकार की पूजा के नाम दिये गये हैं। प्रत्येक पूजा के माहात्म्य के लिए १७ कथाएँ दी गई हैं।
यह कथाग्रन्थ ५ सर्गों में विभक्त है। ग्रन्थान १९४८ श्लोक-प्रमाण है। इसमें संस्कृत के विभिन्न छन्दों का प्रयोग हुआ है।
रचयिता और रचनाकाल-इस ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके प्रणेता अंचलगच्छेश माणिक्यसुन्दरसूरि हैं जिन्होंने इसे सं० १४८४ में सत्यपुर ( साचौर ) के वधमान जिनभवन में उपाध्याय धर्मनन्दन के विशिष्ट सान्निध्य से समाप्त किया था। इनकी अन्य कृतियों में श्रीधरचरितकाव्य, शुकराजकथा, धर्मदत्तकथानक, महाबलमलयसुन्दरीकथा, चतुःपूर्वीचम्पू , पृथ्वीचन्द्रचरित्र (गद्य) अदि उपलब्ध होते हैं।
गरविक्कमचरिय-इसमें नरसिंह नृप के पुत्र राजकुमार नरविक्रम, उसकी पत्नी शीलवती और उन दोनों के दो पुत्रों के विपत्तिमय जीवन का वर्णन है जो एक अप्रिय घटना के कारण राज्य छोड़कर चले गये थे और अनेक साहसिक घटनाओं के बाद पुनः मिल गये थे। यह कथा पूर्वकर्म-फल-परीक्षा के उद्देश्य से कही गई है। ___इस कथा को गुणचन्द्रसूरि ने महावीरचरियं में भी विस्तार से दिया है जिसे संस्कृत छाया के साथ पृथक रूप में प्रकाशित किया गया है । इस कथा का महत्त्व इसमें है कि यह अनेक जैन और अजैन लेखकों द्वारा गुजराती में वर्णित लोककथा 'चन्दनमलयगिरि' का आधार सिद्ध हुई है।
१. सर्ग २. ४२-४५. २. नेमिविज्ञान ग्रन्थमाला (२०), सं० २००८. ३. महावीर विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ में प्रकाशित अंग्रेजी लेख 'Jain
and Non-Jain Versions of the Popular Tale of Chandana-Malayagiri from Prakrit and other Early Literary Sources' by Ramesh N. Jani.
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