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कथा-साहित्य
कूलवालककथा —कूलवाल की कथा आगमों में प्रसिद्ध है । उपदेशप्रासाद
इस पर अज्ञातकतृक एक
तथा शीलोपदेशमाला में इसकी कथाएँ आई हैं। रचना का उल्लेख मिलता है । '
प्रियंकरकथा — उपसर्गहरस्तोत्र के महत्व का वर्णन करने के लिए प्रियंकर नृप की कथा कही गई है। इसकी रचना तपागच्छ के विशालरान के शिष्य जिनसूरि संस्कृत गद्य में की है ।
गजसिंहपुराण - इसे गजसिंहराजचरित भी कहते हैं। इसमें दशरथ नगरी के राजा गजसिंह के शीलादि गुणों से अनेक वैभव पाने का वर्णन है । निशीथवृत्ति में यह चरित्र विस्तार से दिया गया है। गुजराती में इस चरित्र को लेकर कई रास लिखे गये हैं । "
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संस्कृत में अज्ञातकतृक दो रचनाएँ मिलती हैं ।
संग्रामसूरकथा - सम्यक्त्व के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए राजा संग्रामसूर की कथा उपदेशप्रासाद में दी गई है ।
इस पर स्वतंत्र रचना मेरुप्रभसूरिकृत मिलती है ।' गुजराती में सं० १६७८ में तपागच्छीय शान्तिचन्द्र के शिष्य रत्नचन्द्र ने एक कृति लिखी है । "
संकाशश्रावककथा - प्रमादी मित्र के दोष को प्रकट करने के लिए संकाश भावक या संकाश श्रेष्ठी की कथा कही गई है । इस पर अज्ञातकतृ के एक कृति
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संस्कृत में और एक प्राकृत में मिलती है। संकाश की कथा हरिभद्रसूरि के उपदेशपद ( गा० ४०३ - ४१२ ) में भी आई है ।
१. जिनरत्नकोश, पृ० ९५-९६.
२. वही, पृ० २८०, देवचन्द्र लालभाई पु० प्रन्थमाला ( ८० ), बम्बई, १९३२, शारदाविजय जैन ग्रन्थमाला ( १ ), भावनगर, १९२१.
३. वही, पृ० १०२.
४. जैन गुर्जर कविओो, भाग ३, पृ० ६०, ६३, १९६, ५२४, ५२६.
५. जिनरत्नकोश, पृ० ४१०.
६. जैन गुर्जर कविमो, भाग ३, पृ० ९८९.
• जिनरत्नकोश, पृ० ४०८.
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