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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह कन्या समस्त पुरुषों से विद्वेष करती थी, किसी पुरुष का मुँह भी नहीं देखना चाहती थी। इसके सम्बन्ध में एक मुनिराज ने बतलाया था कि अयोध्या के राजा का पुत्र कुवलयचंद्र समस्यापूर्ति द्वारा इसे वश में कर। विवाह करेगा।
मार्ग में यक्ष जिनेश्वर, वनसुन्दरी एणिका, राजपुत्र दर्पफलिह आदि का वृत्तान्त वह जानता है, फिर विजयानगरी में जाकर कुवलयमाला की पादपूर्ति कर उससे विवाह कर लेता है और उसके साथ स्वदेश लौट आता है। मार्ग में भानुकुमार मुनि के दर्शनकर वह उनसे संसारचक्र के चित्रपट का वृत्तान्त जानता है।
कुवलयचन्द्र के लौट आने पर राजा दृढवर्मा ( उसका पिता) दीक्षा ले लेता है। कुवलयमाला को कुछ काल पश्चात् एक पुत्र होता है। उसका नाम पृथ्वीसार रखा गया । समय आने पर कुवलयचन्द्र और कुवलयमाला दोनों पृथ्वीसार कमार को राज्यभार सौंप दीक्षा ले लेते हैं। बहुत काल तक राज्यसुख भोगकर पृथ्वीसार भी दीक्षा ले लेता है। उधर सागरदत्त मुनि और सिंह भी मरणोपरान्त देवरूप में जन्म लेते हैं। देवायु पूर्ण होने पर वहाँ से च्युत होकर कुवलयचन्द्र का जीव भगवान् महावीर के समय में काकन्दीनगरी में कंचनरथ राजा के शिकार-व्यसनी पुत्र मणिरथकुमार के रूप में जन्मा। कंचनरथ राजा की प्रार्थना पर भग० महावीर इस पुत्र के एक भव की कथा कहते हैं जिसे सुनकर वैराग्य प्रासकर मणिरथकुमार उनके पास दीक्षित हो जाता है। इधर मोहदत्त का जीव देवलोक से च्युत होकर रणगजेन्द्र के पुत्र कामगजेन्द्र के रूप में जन्म लेता है। वह अपने भोगे अनुभवों की सत्यता भगवान् महावीर के मुख से सुनकर दीक्षा ले लेता है। लोभदेव का जीव देवलोक से च्युत होकर ऋषभपुर नगर के राजा चन्द्रगुप्त का पुत्र वज्रगुप्त होता है। प्राभातिक के शब्दों से प्रतिबोध पाकर वह भी भग० महावीर के पास दीक्षा ले लेता है। चण्डसोम का जीव भी देवलोक से च्युत होकर ब्राह्मण यज्ञदेव के पुत्र स्वयम्भूदेव के रूप में जन्म लेता है और गरुड के वृत्तान्त से प्रतिबुद्ध होकर भ० महावीर के पास दीश्चित हो जाता है। मायादित्य का जीव देवलोक से च्युत होकर राजगृह नगरी में राजा श्रेणिक का पुत्र महारथ होता है और अपने स्वप्न का भग० महावीर के मुख से स्पष्टीकरण सुन वैराग्य प्राप्तकर दीक्षा ले लेता है। आयु का अन्त होने पर ये पाँचों अन्तिम सल्लेखना स्वीकारकर अन्तकृत् केवली हो सिद्धलोक जाते हैं।
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