________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
यात्रा और अग्निस्वर्णपुरुष की प्राप्ति;
१. विक्रमचरित - विक्रमादित्य के चरित्र का स्वतंत्र एवं सर्वागीण जैन रूपान्तर सर्वप्रथम देवमूर्ति उपाध्यायकृत विक्रमचरित्र ( संस्कृत ) में दिखाई पड़ता है । इसमें १४ सर्ग हैं जिनमें विभिन्न छन्दों में ४८२० पद्य हैं । इन सर्गों में क्रमशः ९४, १३२, २००, ६८५, २४४, २९०, २२३, २४९, १५९, ३३९, ६८२, १४०, २४२ और ११४० पद्य हैं। प्रथम सर्ग में विक्रम का जन्म और बाल्यकाल; दूसरे में विक्रम की रोहणागिरि की बेताल की प्राप्ति तथा अवन्ति का राज्य पाना; तीसरे में चतुर्थ में पञ्चदण्ड छत्र की प्राप्ति; पाँचवें में द्वादशावर्त वन्दन की जैन कथाएँ; छठे में विक्रम का उस राजकुमारी के पास जाना जो उस पुरुष से विवाह करना चाहती है जो रात्रि में उसे चार कहानियाँ सुनाकर जायगा; सातवें में विक्रम और सिद्धसेन की कथा, आठवें में राजकुमारी हंसावली से विवाह; नवम में विक्रम द्वारा परपुरप्रवेश विद्या; दशम में रत्नचूड की कथा; ग्यारहवें में विक्रम की विभिन्न शक्तियों सम्बन्धी कथाएँ; बारहवें में कीर्तिस्तम्भ बनाने सम्बन्धी विभिन्न कहानियाँ; तेरहवें में विक्रम और शालिवाहन तथा चौदहवें में विक्रमसेन और सिंहासन सम्बन्धी बत्तीस कथाएँ वर्णित हैं ।
३७६
उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि देवमूर्ति ने विक्रम सम्बन्धी उन सभी लोककथाओं का संग्रह किया है जो उसके पहले जैन परम्परा को ज्ञात थीं । साथ ही उसने विक्रम के जीवन वृत्तचित्र को पूर्ण करने के लिए पाँच के लगभग अध्याय और भी जोड़ दिये हैं । इस काव्य में विक्रम को पक्के भक्त जैन नरेश के रूप में चित्रित किया गया है और श्रावक के लिए बतलाये गये सभी व्रतों को पालन करनेवाला तथा अपने प्रत्येक साहसिक कार्य पर जैन तीर्थंकर या देवी-देवताओं की पूजा करनेवाला दिखलाया गया है। इस तरह धार्मिक जैन नरेशों के बीच विक्रम का स्थान देवमूर्ति ने अन्तिम रूप से सुरक्षित कर दिया है और प्रायः जैन पाठान्तरवाली सिंहासन सम्बन्धी ३२ कथाओं को भी उसके जीवन के साथ जोड़ दिया है पर उन्हें सिंहासनद्वात्रिंशिका के रूप में नहीं कहा है । इन कथाओं में उसने यत्र तत्र कुछ परिवर्तन भी किया है ।
विक्रमादित्यसम्बन्धी जैन कथाओं में एक अद्भुत कथा पंचदण्डच्छत्र की कथा है । यद्यपि जैन प्रबन्धों ( प्रबन्धचिन्तामणि आदि ) में इसका उल्लेख नहीं
१. जिनरत्नकोश, पृ० ३४९; इसकी हस्तलिखित प्रति हेमचन्द्राचार्य ज्ञानमन्दिर, में उपलब्ध है 1
पाटन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org