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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
यह पंचतंत्र इन सत्र देशों में इतना अधिक लोकप्रिय हो गया कि जैनों तक ने इस बात को भुला दिया कि मूल में यह जैन विद्वान् का लिखा हुआ था । '
प्राचीन जैन कथाग्रन्थ वसुदेवहिण्डी, बृहत्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य, आवश्यकचूर्णि, दशवैकालिक चूर्णि आदि में पंचतंत्र की शैली में लिखे हुए नीति और लोकाचार सम्बन्धी अनेक आख्यान उपलब्ध होते हैं । इनमें से कितने ही आख्यानों का विकसित रूप पंचाख्यानक में विद्यमान प्रतीत होता है । हर्टल महोदय ने समीक्षा करते हुए यह भी कहा है कि पूर्णभद्रसूरि ने अपने पंचतंत्र में कतिपय अज्ञात स्रोतों से कितनी ही नई कहानियों एवं सूक्तियों का समावेश किया है। इस ग्रन्थ की भाषाशास्त्रीय विशेषताओं पर से हर्टल की मान्यता है कि अन्य बातों के साथ-साथ ग्रन्थकर्ता ने अपनी रचना में प्राकृत रचनाओं अथवा कथाओं का लौकिक भाषा में उपयोग किया है ।
पंचाख्यानसारोद्धार – अन्य जैन पंचतंत्रों में धनरत्नगणिकृत पंचाख्यान या पंचाख्यानसारोद्धार मिलता है जिसका रचनाकाल सं० १५४५ से पहले का है। क्योंकि उक्त संवत् की इसकी एक हस्तलिखित प्रति मिली है ।
१. हर्टल, आन दि लिटरेचर आफ दि श्वेताम्बर्स आफ गुजरात, लाइप्जिग,
१९२२, पृ० ७-८.
२. डा० जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत जैन कथासाहित्य, पृ० ७८-९२ में नीतिकथा की अनेक कहानियाँ देकर उनके स्रोतों को दिखाया गया है। कोटा ( आदिवासी जाति ) लोककथा के कल्पनाबन्ध ( Motif ) की तुलना कुछ जैन कथाओं से की गई है। देखिये - M. B. Emenean का जरनल भाफ अमेरिकन ओरियण्टल सोसाइटी ( ६७ ) में लेख 'स्टडीज इन दि फोकटेल्स आफ इण्डिया'; स्त्री- शुद्धिपरीक्षा के कल्पनाबन्ध के लिए देखें(१) स्टेण्डर्ड डिक्शनरी आफ फोकलोर, माइथोलाजो एण्ड लीजेण्ड, भाग १, मारिया लीच, न्यूयार्क, १९४५ में 'चेस्टिटी टेस्ट' और 'एक्ट आफ टूथ' नामक लेख.
३. जिनरत्नकोश, पृ० २३०.
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