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ऐतिहासिक साहित्य
उल्लेख करते हैं । एक समय अकबर को भयानक सिरदर्द था । उसे दूर करने में किसी चिकित्सक को सफलता नहीं मिली । तब सम्राट ने भानुचन्द्र का स्मरण किया । उन्होंने सम्राट् के सिर पर हाथ रखकर चिन्तामणि पार्श्व की स्तुति की । इससे सिरदर्द सदा के लिए दूर हो गया । राज्य के उमरावों ने इस खुशी में कुर्बानी के लिए पशु एकत्र किये किन्तु खबर पाते ही बादशाह ने वह तुरन्त रुकवा दी। एक बार शिकार करते हुए बादशाह को गई और दो माह तक पलंग पर पड़े रहे । आज्ञा थी पर भानुचन्द्र और अबुलफजल को शिष्य सिद्धिचन्द्रकृत 'भानुचन्द्रगणिचरित" में नूरजहां तथा कई एक दरबारियों का चरित्र-चित्रण किया गया है ।
मृग के सींग से चोट आ उस समय सभी को न मिलने की कोई आज्ञा न थी । भानुचन्द्र के उक्त बातों के अतिरिक्त जहांगीर,
आचार्य हीरविजय के प्रधान शिष्य विजयसेन पर हेमविजयगणिकृत 'विजयप्रशस्तिमहाकाव्य तथा उनके प्रशिष्य विजयदेव पर श्रीवल्लभ उपाध्यायकृत 'विजयदेवमाहात्म्य' तथा मेघविजयगणिकृत 'विजयदेवमाहात्म्यविवरण' 'दिग्विजय काव्य', 'देव नन्द महाकाव्य" आदि में अकबर और जहांगीर के विषय में अनेक ऐतिहासिक बातें दी गई हैं। विजयसेनसूरि को अकबर ने लाहौर बुलाया था। उनके शिष्य नन्दिविजय को अष्ट अवधान पर उसने खुशफहम ( a man of sharp intellect ) की उपाधि दी थी । विजयसेनगणि ने सम्राट के दरबार में 'ईश्वर कर्ता हर्ता नहीं है' विषय पर अन्य धर्मों के विद्वानों से अनेक शास्त्रार्थ किये थे और उन्हें 'सवाई हीरविजयसूरि' की उपाधि मिली थी । उनके अनुरोध से उसने गाय, बैल आदि पशुओं की हिंसा रोक दी थी । " सन् १५८२ से लेकर बहुत समय तक अकबर और जहांगीर के दरबार में कोई न कोई विद्वान् आचार्य रहे थे ।
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प्रशस्तियाँ :
प्रशस्ति का अर्थ होता है गुगकीर्तन । संस्कृत साहित्य की यह एक अत्यन्त रोचक शैली है | आलंकारिक शैली के काव्यरूप में लिखे जाने पर भी प्रशस्तियों के विषय इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति ही होते हैं और इनसे अतीत के इतिहास के
१-४. इन ग्रन्थों का परिचय पहले दिया गया है।
५.
विशेष के लिए 'अकबर आणि जैनधर्म सूरीश्वर आणि सम्राट् ग्रन्थ देखें; जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ५३५-५६० विशेषरूप से द्रष्टव्य है ।
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