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ऐतिहासिक साहित्य
१३९ पद्य ५२-६२ में उसके सुकृत्यों की सूची दी गई है। पद्य ६३-७१ में मन्दिर के मुख्य अधिष्ठाता एवं प्रशस्ति के रचयिता जयसिंह के उपदेश से एवं अपने अग्रज वस्तुपाल की आज्ञा से तेजपाल द्वारा स्वर्ण ध्वजदण्डों के निर्माण का वर्णन है । अन्त में ध्वजदण्डों, मन्दिर और दोनों मन्त्रियों के लिए आशीर्वचन है।
इस प्रशस्ति के रचयिता वीरसिंहसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि हैं। इन्होंने हम्मीरमदमर्दन नाटक भी रचा है जो एक ऐतिहासिज नाटक ही है और वस्तुपाल की शौर्यकथा बतलाता है। १. वस्तुपालप्रशस्ति :
यह २६ श्लोकों की प्रशस्ति है। पहले पद्य में मंगलाचरण तथा दूसरे में वस्तु पाल और तेजपाल और उनके पूर्वजों का वर्णन है। शेष काव्य में अपने आश्रयदाता की स्तुति ही है।
इसके रचयिता नरचन्द्रसूरि हैं जो हर्षपुरीय या मलधारीगच्छ के देवप्रभसूरि के शिष्य थे। ये वस्तुपाल के मातृपक्ष से गुरु थे। इन्होंने वस्तुपाल को न्याय, व्याकरण और साहित्य आदि ग्रन्थ पढ़ाये थे। ये कई ग्रन्थों के रचयिता एवं टिप्पणकार थे। इनका फलित ज्योतिष पर ज्योतिःसार याने नारचन्द्रज्योतिःसार मिलता है। इन्होंने श्रीधर की न्यायकन्दली पर एवं मुरारि के अनर्घराघव नाटक पर टिप्पण लिखे तथा जैन कथानकों पर कथारत्नसागर तथा चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र रचा था। २. वस्तुपालप्रशस्ति : ____ यह १०४ पद्यों की एक प्रशस्ति है।' इसे नरचन्द्रसूरि के शिष्य नरेन्द्रप्रभसूरि ने बनाया है । यह ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टि से कुछ महत्त्व की है। इसके प्रथम पद्य में जिन और महादेव की श्लेषमय स्तुति है, पद्य २-१२ में चौलुक्य वंश के राजाओं की कीर्तिगाथा तथा १३-१७ में बघेलावंश का वर्णन, पद्य १८-२४ में वस्तुपाल के पूर्वजों और उसके निजगुणों के विषय में पद्य २५-२८ में वणन किया गया है। इसके बाद ९८ पद्य तक वस्तुपाल की तीर्थयात्राओं, जीर्णोद्धार, धर्मशाला-निर्माण आदि कार्यों का वर्णन है। पद्य ९९-१०४ में
१. महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मण्डल, पृ० १०१. २. जिनरत्नकोश, पृ० ३४५.
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